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प्रज्ञापुरुष आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज | २१
लुधियाना में विराजित थे । सम्मेलन में अनुपस्थित होने पर भी आपको ही आचार्य पद प्रदान किया। जन-गण मानस में आचार्य प्रवर के व्यक्तित्व की छाप चिरकाल से पड़ी हुई थी । इसी कारण दूर रहते हुए भी श्रमण संघ आपको ही आचार्य बनाकर अपने आपको धन्य मानने लगा । लगभग दस वर्ष तक आपने श्रमणसंघ का कुशलता से नेतृत्व किया और अपना उत्तरदायित्व यथाशक्य पूर्णतया निभाया । उस समय श्रमण संघ की गुरु-गम्भीर ग्रन्थियों को आप जैसा प्रज्ञापुरुष ही सुलझा सकता था; अन्यथा संघ उसी समय छिन्न-भिन्न हो सकता था। भारतव्यापी समग्र स्थानकवासी जैन संघ का आचार्यपद सम्भालना कोई आसान काम न था ।
पण्डित मरण
वि० सं० २०१८ में आप श्री जी के शरीर को लगभग तीन महीने कैंसर महारोग ने घेरे रखा था । महावेदना होते हुए भी आप शान्त रहते थे । दूसरे को यह भी पता नहीं चलता था, कि आपका शरीर कैंसर रोग से ग्रसा हुआ है । अपनी नित्य क्रिया वैसे ही चलती रही, जैसे कि पहले । अन्ततोगत्वा आप श्री जी ने दिनांक ३०-१-६१ को प्रातः १० बजे अपच्छिम मारणान्तिक संलेखना करके अनशन कर दिया । परम समाधि तथा शान्ति के साथ ३१ जनवरी प्रारम्भ हुई ।
1. ठीक दो बजकर बीस मिनट पर पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज अमर हो गये । माघवदी नवमी - दसमी की मध्यरात्रि को नश्वर शरीर का परित्याग किया । संयमगीता, सहिष्णुता गम्भीरता, विद्वत्ता, दीर्घदर्शिता, सरलता, नम्रता तथा पुण्यपुज से वे महान थे ।
दिवंगत आचार्य सम्राट् के प्रशिष्य, उपाध्याय श्री फूलचन्द जी म० 'श्रमण' ने अपने गुरु के अपूर्ण कार्य को पूरा करने का संकल्प ग्रहण कर लिया था । उपाध्याय जी ने उपासक दशांग, नन्दी सूत्र और स्थानांग सूत्र का सम्पादन करके प्रकाशित करा दिया है ।
भण्डारी श्री पदमचन्द्र जी म० आचार्य श्री जी के निकट विश्वस्त सेवक रहे. हैं । आचार्यश्री की अन्तिम अवस्था में उन्होंने तन-मन समर्पण करके अग्लान सेवा की है । वे आज भी आचार्य श्री की महिमा गरिमा के लिए प्रयत्नशील हैं । आचार्य श्री की जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में उन्होंने, जैन श्रुत साहित्य का महान रत्नाकर 'भगवती सूत्र' का सम्पादन- विवेचन कर प्रकाशित कराने की महान योजना बनाई है, भगवती के दो खण्ड तैयार भी हो गये हैं ।
आचार्यश्री की एक महत्वपूर्ण कृति - 'जैन तत्व कलिका विकास' का सम्पीदन प्रवचनभूषण श्री अमर मुनिजी ने नवीन शैली में किया है । जो 'जैन तत्व कलिका' नाम से प्रकाशित हो रही है। वास्तव में शिष्य या प्रशिष्य कोई भी हो, जो गुरु की गरिमा में चार चाँद लगाए वही श्लाघनीय है । भण्डारी श्री पदमचन्द्र जी महाराज एवं श्री अमरमुनि जी इस क्षेत्र में अग्रणी रहे हैं ।