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२० | प्रज्ञापुरुष आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज . .
उनके दीक्षागुरु और विद्यागुरु मुनि सत्तम परमयोगी श्री आत्माराम जी म० बने । गुरु और शिष्य दोनों के शरीर तथा मन पर सौन्दर्य की अपूर्व छटा दृष्टिगोचर हो रही थी। जब दोनों व्याख्यान के मंच पर बैठते थे, तब जनता को ऐसा प्रतीत होता था, मानों सूर्य-चन्द्र एक स्थान में विराजित हों। जब अध्ययन और अध्यापन होता था, तब ऐसा प्रतीत होता था, मानो सुधर्मा स्वामी और जम्बूस्वामी जी विराज रहे हों । क्योंकि दोनों ही घोर ब्रह्मचारी, महामनीषी, निर्भीक प्रवक्ता, शुद्ध संयमी, स्वाध्याय-परायण, दृढ़ निष्ठावान, लोकप्रिय एवं संघसेवी थे। गुरु शिष्य की इस युगल जोड़ी ने समाज को जो प्रदेय प्रदान किया, वह था-ज्ञान और क्रिया । गुरु था ज्ञान, तो उसका प्रखर शिष्य था--- क्रिया। भगवान् महावीर के शासन में ज्ञान और क्रिया के समन्वय को मोक्ष का साधन, मोक्ष का मार्ग कहा गया है, जिसकी संपूर्ति, इस वर्तमान युग में गुरु-शिष्य ने की थी। उपाध्याय पद
अमृतसर नगर में पूज्य श्री सोहनलाल जी म ने तथा पंजाब प्रान्तीय श्री संघ ने वि० सं० १६६६ के वर्ष में मुनिवर श्री आत्माराम जी म० को उपाध्याय पद से सुशोभित किया । उस समय संस्कृत-प्राकृत भाषा के तथा आगमों के और दर्शन शास्त्रों के उद्भट विद्वान मुनिवर श्री आत्माराम जी म० ही थे । अतः इस पद से अधिक सुशोभायमान होने लगे। स्थानकवासी जैन परम्परा में उस काल की अपेक्षा से सर्वप्रथम उपाध्याय बनने का सौभाग्य श्री आत्माराम जी महाराज को ही प्राप्त हुआ। स्थानकवासी समाज में, इससे पूर्व किसी भी सम्प्रदाय में उपाध्याय पद, किसी को नहीं दिया गया, यह इतिहाससिद्ध सत्य है। आचार्यपद
वि० सं० २००३ चैत्र शक्ला त्रयोदशी महावीर जयन्ती के शुभ अवसर पर पंजाब प्रान्तीय श्री संघ ने एकमत होकर एवं प्रतिष्ठित मुनिवरों ने सहर्ष बड़े समारोह से जनता के समक्ष उपाध्याय श्री जो को पंजाव संघ के आचार्य पद की प्रतीक चादर महती . श्रद्धा से ओढ़ाई। जनता के जयनाद से आकाश गूंज उठा । पंजाब सम्प्रदाय के जिस महनीय आचार्य पद पर परम प्रतापी पूज्य सोहनलाल जी म० रहे हों, तथा परम तेजस्वी पूज्य काशीराम जी म० रहे हों, उस गौरवमय पद की मर्यादा को अक्षुण्ण रखने में यही पुण्यात्मा समर्थ हो सकते थे, दूसरा कोई नहीं । श्रमण संघीय आचार्य पद
वि० सं० २००६ में अक्षय तृतीया के दिन सादड़ी नगर में बृहत्साधु सम्मेलन हुआ। वहाँ सभी आचार्य तथा अन्य पदाधिकारियों ने संघक्यहित एक मन से पदवियों का विलीनीकरण करके श्रमण संघ को सुसंगठित किया, और नई व्यवस्था बनाई। जब आचार्य पद के निर्वाचन का समय आया, तब आचार्य पूज्य आत्माराम जी महाराज का नाम अग्रगण्य रहा । आप उस समय शरीर की अस्वस्थता के कारण