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२२ | प्रज्ञापुरुष आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज
सेवाभावी मुनिरत्न, रतनमुनि जी तथा क्रान्तिमुनि जी प्रभाकर, आचार्य श्री जी के संकल्प को पूरा करने का पूरा-पूरा प्रयास कर रहे हैं । इन मुनिवरों से, आचार्य श्री जी के उत्तराधिकारियों से समाज को भविष्य में बहुत आशा है । संपादित आगम
____ आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज एक प्रज्ञापुरुष थे, या यों कह सकता हूँ जिनागम मन्दिर में सतत प्रज्वलित एक अखण्ड प्रज्ञादीप थे । उनकी वाणी में ज्ञान की गम्भीरता के साथ ही अनुभव की सहजता थी, उनको लेखनी में आगमो के रहस्य इतनी सहजता से प्रस्फुटित होते थे, मानो उपवन में कुसुम कलियाँ चटकती-खिलती अपना सौरभ लुटा रही हों । ज्ञान की गम्भीरता, विषय की विशदता और भाषा की सहज सुबोधता, आचार्यश्री की साहित्य-साधना के त्रिभुज थे।
___आपने आगमों में-आवश्यक सूत्र दोनों भाग, अनुयोग द्वार सूत्र, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन; आचारांग, उपासकदशा, नन्दी, स्थानांग, अंतगड, अनुत्तरौपपातिक दशाश्रुतस्कंध, वृहत्कल्प, निरयावलिका, प्रश्नव्याकरण आदि आगमों की हिन्दी व्याख्याएँ लिखी हैं :
इन आगम व्याख्याओं में टोका, भाष्य, चूणि आदि का सारपूर्ण चिन्तन लेकर उनका निचोड़ प्रस्तुत किया गया है । उत्तराध्ययन एवं दशवकालिक सूत्र की टीकाएं तो इतनी लोकप्रिय हुई हैं कि न केवल स्थानकवासी श्रमण-श्रमणी, किन्तु श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तथा तेरापंथी साधु समाज में भी वे आदर के साथ पढ़ी जाती हैं।
__ आगम व्याख्याओं के अतिरिक्त जैनतत्व दर्शन का सरलीकरण करने वाली अनेक छोटी-बड़ी लगभग ६० पुस्तकें भी आचार्यश्री ने लिखीं। जिनमें जैन तत्व कलिका विकास, जैन न्याय संग्रह, जैनागमों में स्याद्वाद, जैनागमों में परमात्मवाद जैनागमों में अष्टांग योग आदि विशेष महत्वपूर्ण तथा पठनीय पुस्तकें हैं ।
वास्तव में आचार्यश्री का कृतित्व और व्यक्तित्व सम्पूर्ण जैन समाज के लिए प्रज्ञादीप था। ज्ञान और क्रिया का एक संगम था। जिसमें जैनतत्व अपनी सम्पूर्ण गरिमा के साथ समाहित था। उस स्थितप्रज्ञ प्रज्ञा प्रदीप को कोटि-कोटि वन्दन ! जैन भवन
-विजय मुनि, शास्त्री आगरा