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२३० : जैन तत्त्वकलिका-द्वितीय कलिका
स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान और शास्त्र चिंतन करे। तीसरे प्रहर के अन्त में निद्रा का त्याग करे।।
इस प्रकार साधु की दिन-रात्रि की चर्या सम्बन्धी क्रियाओं का निर्देश उत्तराध्ययन सूत्र में किया गया है।'
पाँच समिति तीन गुप्ति सम्बन्धी शुद्ध क्रियाएँ . पांच समिति और तीन गुप्ति, ये अष्ट प्रवचन माताएँ हैं साधक को गमन, भाषण, भोजन, शयनादि समस्त प्रवृत्तियाँ हार्दिक श्रद्धा एवं सम्यक उपयोगपूर्वक समिति गुप्ति के माध्यम से करनी चाहिए।
जिसके द्वारा सम्यक्तया प्रवृत्ति हो, चारित्र पालन हो, उसे समिति कहते हैं, तथा मन-वचन-काया के सम्यक निरोध-नियन्त्रण या संयम से चारित्र की रक्षा हो उसे गुप्ति कहते हैं।
पाँच समितियाँ इस प्रकार हैं
(१) ईर्या समिति-ईर्या कहते हैं कायचेष्टा को, उसकी समिति अर्थात् सम्यक्-शुभ उपयोग को । अर्थात्-गत्यर्थक जितनी भी क्रियाएँ हैं, उन्हें सम्यक् उपयोगपूर्वक यतनापूर्वक करना ईर्या समिति है। जैसे-चलना है तो निज शरीर प्रमाण भूमि को आगे देखकर चलना, इसी प्रकार आसन पर बैठना, शय्या पर सोना, वस्त्रादि पहनना आदि क्रियाएँ करते समय भी उन क्रियाओं में विशेष उपयोग और यतना होनी चाहिए।
(२) भाषा समिति-क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य आदि के वश अथवा किसी प्राणी के लिए पीडाकारक, हानिकारक, व्यर्थ, विकथारूप या कामोत्तेजक, हिंसाप्रेरक भाषण कदापि न करना, अपितु मधुर, हितकर, परिमित एवं सत्य वचनों का प्रयोग करना चाहिए ।
(३) एषणा समिति-भिक्षाचरी के ४२ दोषों (१६ उद्गम के, १६ उत्पाद के और १० एषणा के, यों ४२ दोष) से रहित शुद्ध और निर्दोष आहार की गवेषणा, ग्रहणषणा और परिभोगेषणा (ग्रासैषणा से करना एषणा
१ उत्तराध्ययन सूत्र अ. २६, गा. १७ से ५३ तक . २ पाँच समितियों एवं तीन गुप्तियों के स्वरूप का विस्तृत वर्णन चारित्राचार के
प्रकरण में किया गया है। ३ आहार सम्बन्धी ४२ दोषों का वर्णन पिछले पृष्ठों में हो चुका है ।