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________________ साधु का सर्वांगीण स्वरूप : २२७ तत्पश्चात् कायोत्सर्ग' करके गुरु-आदि दीक्षाज्येष्ठ साधु को विधिपूर्वक विनयभक्ति सहित दोषवर्जित 'वन्दना करके उनसे पूछे कि 'मैं स्वाध्याय करूं, १ कायोत्सर्ग के उन्नीस दोष-(१) घोटक, (२) लता, (३) स्तम्भकुड़य, (४) माल, (५) शबरी, (६) वधू, (७) निगड, (८) लम्बोत्तर, (९) स्तनदोष, (१०) उद्धिकादोष, (११) संयतीदोष, (१२) खलीन दोष, (१३) वायसदोष, (१४) कपित्थदोष, (१५) शीर्षोत्कम्पित दोष, (१६) मूकदोष, (१७) अंगुलिकाभ्र दोष, (१८) वारुणी दोष, और (१६) प्रेक्षा दोष । प्रवचनसारोद्धार में कायोत्सर्ग के ये उन्नीस दोष बताये हैं, इनसे बचकर विधिपूर्वक दोष रहित कायोत्सर्ग करना चाहिये। २ वन्दना के बत्तीस दोष-(१) अनादृत, (२) स्तब्ध (अभिमानपूर्वक), (३) प्रविद्ध (अस्थिर होकर या अपूर्ण छोड़कर वन्दना करना), (४) परिपिण्डित (एक स्थान पर रहे हुए आचार्यादि सबको पृथक्-पृथक् वन्दना न करके एक साथ एक ही वन्दना करना), (५) टोलगति (टिड्डी की तरह कूद-फांदकर) (६) अंकुशदोष-(रजोहरण के अंकुश की तरह पकड़कर या सोये हुए आचार्यादि के अंकुश की तरह लगाकर वन्दना करना); (७) कच्छपरिगत (कछुए की तरह रेंग कर वन्दन करना), (८) मत्स्योदवृत्त (मछली की तरह शीघ्र पार्श्व फेरकर बैठे-बैठे ही या पास में बैठे हुए रत्नाधिक को वन्दना करना), (8) मनसा-प्रविष्ट (असूयापूर्वक वन्दना करना), (१०) वेदिकाबद्ध (घुटनों के ऊपर, नीचे या पार्श्व में या गोदी में हाथ रखकर वन्दना करना), (११) भय (भयवश वन्दना करना), (१२) भजमान (आचार्यादि अनुकूल रहे, इस दृष्टि से वन्दना करना), (१३) मैत्री (आचार्यादि से मैत्री की आशा से वन्दन करना), (१४) गौरव (गौरव बढ़ाने की इच्छा से वन्दना करना) (१५) कारण (ज्ञान-दर्शनचारित्र के सिवा अन्य वस्त्रादि ऐहिक वस्तुओं के लिए वन्दना करना), (१६) स्तन्य (चोर की तरह छिपकर वन्दना करना); (१७) प्रत्यनीक (गुरुदेव आहारादि करते हों, उस समय वन्दना करना) (१८) रुष्ट (रोषपूर्वक वन्दना करना), (१६) तजित (डाँटते-फटकारते वन्दना करना), (२०) शठ (दिखावे के लिए वन्दना करना या बीमारी आदि का बहाना बनाकर ठीक से वन्दना न करना), (२१) होलित (हँसी करते हुए), (२२) विपरिकुचित वन्दना अधूरी छोड़कर अन्य बातों में लगाना), (२३) दृष्टादृष्ट (गुरु आदि के न देखते वन्दना न क्रमशः
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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