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________________ २२० : जैन तत्त्वकलिका — द्वितीय कलिका राज्य या शासक का अपराधी (अपकारी) हो, उन्मत्त या पागल हो, अन्धा हो, गुलाम या दास के रूप में खरीदा हुआ हो, अत्यधिक कषायग्रस्त हो, बारबार विषयभोग लिप्सु हो, मूढ़ हो, ऋणी (कर्जदार) हो, जाति, कर्म तथा शरीर से दूषित — अंगविकल हो, धन लोभ से दीक्षा लेने आया हो । स्त्री सगर्भा हो अथवा उसका बालक स्तनपान करता हो तो ऐसी स्थिति में उसे साध्वी दीक्षा नहीं दी जा सकती । " दीक्षार्थी के परिवार में यदि उसके माता-पिता बुजुर्ग (बड़े) या संरक्षक हों तो उनकी अनुमति लेनी आवश्यक है । सावधानी के रूप में तथा भविष्य में किसी प्रकार का विवाद न खड़ा हो जाए, इसलिए स्त्री तथा युवा पुत्रों से भी दीक्षा की अनुमति ले लेनी चाहिए । स्त्री को तो अपने पति, श्वसुर आदि तथा माता-पिता की अनुमति आवश्यक है ही, साथ ही युवा-पुत्र की अनुमति भी लेनी चाहिए । इतना होने पर भी दीक्षादाता गुरु को दीक्षार्थी के कुल, वय, योग्यता, ज्ञानाभ्यास, स्वभाव, आचार-विचार, गुण-दोष, देव गुरु-धर्म विषयक श्रद्धा, साधु धर्म पालन की शक्यता - अशक्यकता आदि की परीक्षा (जाँच) करके पूर्व तैयारी कराकर ही दीक्षा देनी चाहिए । २ साधुधर्म - दीक्षा ग्रहण के समय की प्रतिज्ञा क्षार्थी को सर्वप्रथम सर्वविरति सामायिक चारित्र ग्रहण करना आव १ (क) बाले वुढ्ढे नपुं से अ कीवे जड्डे अ वाहिए । fa तेणे रायावगारी अ, उम्मत्ते य अदंसणे ॥७६० ॥ दासेदुट्ठे य मूढे अ अणत्ते जु ंगिए इ अ । ओबद्धए अ भयए, हनफेड आइ अ ॥७६१ ॥ अट्ठास भेआ पुरिस, तहेत्थिआए ते चेव । गुव्विणी सबालवच्छा दुन्नि इमे हुति अन्ने वि ॥ ७९२ ॥ (ख) तथा गुरुजनाद्यनुज्ञ ेति – धर्मबिन्दु अ. ४ २ (क) अब्भुवगयं पि संतं पुणो परिक्वेंज्ज पवयण विहीए । छम्मा जाssसज्ज व पत्त अद्धा अप्पबहु ॥ - प्रवचनसारोद्धार | प्रवचनसारोद्धार (ख) उपस्थितस्य प्रश्नाचार कथनपरीक्षादिविधिरिति । तथानिमित्त परीक्षेति । - धर्मबिन्दु अ० ४.
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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