________________
२१८ : जैन तत्त्वकलिका—द्वितीय कलिका
किया हुआ (शरीर ममत्व का उत्सर्ग किया) है; उसे निग्रन्थ कहना चाहिए।' पाँच कोटि के निर्ग्रन्थ
शास्त्र में पाँच कोटि के निग्रन्थ बताये हैं
(१) पुलाकनिम्रन्थ-जिन्होंने रागद्वष की या ममता को गाँठ (ग्रन्थी) का छेदन कर दिया हो, वे निग्रन्थ कहलाते हैं । सभी मुनियों में सामान्य रूप से यह लक्षण घटित होता है । सर्वप्रथम पुलाक निग्रन्थ हैं ।
खेत में गेहूँ आदि के पौधों को काटकर उनके पूले बाँधकर ढेर किया जाता है। उनमें धान्य कम, भुस्सा-कचरा ही अधिक होता है। इसी प्रकार जिस साधु में गुण थोड़े और अवगुण अधिक हों, वह पुलाक निग्रन्थ कहलाता है। यह दो प्रकार का है-लब्धि पूलाक और आसेवना पलाक। .
(२) बकुशनिर्ग्रन्थ-जैसे पूर्वोक्त. पूलों में से घास दूर करके ऊँबियों (बालों) का ढेर किया जाय तो यद्यपि पहले की अपेक्षा कचरा कम हो जाता है, फिर भी धान्य की अपेक्षा कचरा अधिक होता है, इसी प्रकार जो साधु गुण-अवगुण दोनों के धारक हों; वे बकुश निग्रन्थ कहलाते हैं। ये भी दो प्रकार के हैं-शरीर बकुश और उपकरण बकुश । इनका चारित्र सातिचारनिरतिचार दोनों प्रकार का होता है।।
(३) कुशील निर्ग्रन्थ-पूर्वोक्त गेहूँ आदि की ऊँबियों (बालों) के उक्त ढेर में से घास-मिट्टी आदि अलग कर दिए जाएँ, खलिहान में बैलों के पैरों से कुचलवाकर (दाँय कराकर) दाने अलग कर दिए जाएँ तो उसमें दाने और कचरा दोनों लगभग समान होते हैं, उसी प्रकार जिस साधु में गुण और अवगुण दोनों समान मात्रा में हों, वे कुशील निम्रन्थ होते हैं । ये भी दो प्रकार के होते हैं-कषायकुशील और प्रतिसेवना कशील। इनमें संज्वलन कषाय रहता है। .
(४) निर्ग्रन्थ-जैसे धान्य की राशि को हवा में उपनने से उसमें से कचरा, मिट्टी आदि अलग हो जाते हैं, केवल थोड़े से कंकर रह जाते हैं,
१ एत्थ वि निग्गंथे एगे एगविऊ बुद्धे संछिन्नसोए, सुसंजते, सुसमिते, सुसामाइए,
आयवायपत्ते विऊ दुहओ वि सोयपलिच्छिन्ने णो पूया-सक्कारलाभट्ठी धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिवन्ने समियं चरे दंते दविए वोसटकाए निग्गंथेत्ति वच्चे।
-सूत्र० १०, १ अ० १६, सूत्र ५ २ पुलाक-बकुश-कुशील-निर्ग्रन्थ-स्नातकाः निर्गन्थाः । -तत्त्वार्थसूत्र अ०६