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२०८ : जैन तत्त्वकलिका-द्वितीय कलिका निदिध्यासन करके, उनके अर्थ, भावार्थ, परमार्थ को ग्रहण करके, अनुप्रेक्षा के साथ आवत्तिपूर्वक स्मरण करना और समय पर उसे इस ढंग से अभिव्यक्त करना, जिससे किसी भी मत का श्रोता प्रभावित होकर सद्धर्म की ओर उन्मुख हो जाय।
(२) धर्मकथा-प्रभावना-चार प्रकार की धर्मकथाओं में से यथावसर किसी एक प्रकार की धर्मकथा (धर्मोपदेश) द्वारा धर्म संघ की प्रभावना करना, धर्मकथा प्रभावना है।
धर्मकथा चार प्रकार की हैं। वे इस प्रकार-(१) आक्षे पिणीकिसी विषय का ऐसा सुन्दर और युक्तिसंगत वर्णन करना, जिससे श्रोता चित्रलिखित से होकर उसे श्रवण करने में तल्लीन हो जाए । (२) विक्ष पिणी -जो व्यक्ति सन्मार्ग को छोड़कर उन्मार्ग की ओर बढ़ रहा है, या चला गया, उसे पुनः सन्मार्ग से स्थापित करने के लिए उपदेश देना । (३) संवेगिनीजिस कथा से हृदय में वैराग्य भाव उमड़े; और (४) निवेदिनी जिस कथा को सुनकर श्रोता को चित्तवृत्ति संसार से या पापकर्मों से निवृत्ति धारण करे।
(३) वाद प्रभावना-किसी स्थान पर जैन-धर्म में स्थित धर्मात्मा पुरुष को गुमराह करके धर्मभ्रष्ट करने का प्रयत्न चल रहा हो, अथवा साधुओं की अवहेलना करके देव-गुरु-धर्म की महिमा कम की जा रही हो, वहाँ पहुँच कर अपने शुद्ध आचार-विचार द्वारा उन्हें सत्यासत्य का भेद समझाकर, उन व्यक्तियों को धर्म में स्थिर होने में सहायता देना, अथवा वाद-विवाद का प्रसंग हो तो सत्यपक्ष का मण्डन करते हुए मिथ्यापक्ष का खण्डन करना।
(४) त्रिकालज्ञ प्रभावना-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि शास्त्रों में कथित भूगोल का ज्ञाता बनना, खगोल, ज्योतिष, निमित्त आदि विद्याओं में पारंगत होना, जिससे त्रिकाल सम्बन्धी शुभाशुभ बातों का ज्ञान हो सके और वह हानि-लाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण आदि जानकर जन सामान्य के उपकार और कल्याण के हेतु प्रकाशित कर सके, साथ ही विपत्ति के समय सावधान रहकर जिनशासन का प्रभाव बढ़ा सके।
(५) तपः प्रभावना-यथाशक्ति दुष्कर तपस्या करना, जिससे जनता के चित्त में उसका अत्यन्त प्रभाव पड़े, वे अहोभाव से तपस्या के प्रभाव को देखकर स्वयं तपश्चरण के लिए प्रेरित हों।