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________________ १८ | प्रज्ञापुरुष आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज गतिशील - प्रगतिशील आचार्यश्री का जीवन प्रारम्भ से ही विकासोन्मुखी रहा है । निरन्तर प्रगति करना, आगे बढ़ते रहना, अपनी साधना में कभी प्रमाद न करना, ये उनके पावन सहज गुण थे । एक सामान्य सन्त से आप अपनी ज्ञान-साधना के बल पर विशिष्ट सन्त बने । आपकी योग्यता को देखकर समस्त पंजाब संघ मिलकर आपको उपाध्याय पद प्रदान किया । यह पद आपकी विशिष्ट योग्यता के अनुरूप ही था । इस पद पर आसीन होने के बाद अनेक श्रमण-जनों को आपने संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं का और आगम एवं दर्शन ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन कराया था । आपका जीवन ज्ञान-पिपासुओं के लिये एक विशाल ज्ञान - प्रपा ( ज्ञान की प्याऊ ) के समान था, जिस पर पहुँचकर सभी को परितृप्ति होती थी, बल्कि मैं तो कहूँगा ज्ञान का एक ऐसा मधुर जल स्रोत ( चश्मा ) था जहाँ निरन्तर शीतल मधुर प्रवाह बहुता रहता और जो भी वहां पहुँचता वह परितृप्ति अनुभव करता । चिरकाल तक उपाध्याय पद पर रहने के बाद पंजाब संघ ने एकमत होकर आपको आचार्य पद प्रदान किया । सादड़ी सम्मेलन के अवसर पर समस्त श्रीसंघ ने मिलकर आपको श्रमण संघ के आचार्य पद पर निर्वाचित किया । यह निर्वाचन सब की सहमति से किया गया था। सादड़ी से लेकर अपने जीवन के चरम चरणों तक आप अखण्ड रूप में श्रमण संघ के आचार्य रहे । लाखों भक्तों के लिए आप उनकी भक्ति, श्रद्धा और निष्ठा के मुख्य केन्द्र स्थान रहते आये थे । यह आपकी लोक-प्रियता का, जग-जन- वल्लभता का एक ठोस एवं प्रबल प्रमाण था । गहन ज्ञान: सूक्ष्म अनुभूति आचार्यश्री का अध्ययन बहुत गम्भीर और विशाल था । अपनी प्रखर प्रतिभा और अप्रतिहत मेधा के बल पर उन्होंने जो पाण्डित्य अधिगत किया था, वह वस्तुतः आदर की वस्तु है, और हम लोगों के लिए महान आदर्श है । व्याकरण, साहित्य, काव्य, कोश, न्याय, दर्शन और आगम बाङमय के आप विराट् विद्वान थे । आगम पर आपका पूर्ण अधिकार था। मूल आगम ही नहीं, आगमो पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीकाओं का भी आपने गम्भीर अध्ययन किया था। संस्कृत और प्राकृत जैसी प्राचीन भाषाओं पर आपका असाधारण अधिकार था । अपने जीवन काल में आपने शताधिक ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन और व्याख्यान किया है । आगमों पर आपने सर्वजन सुलभ भाषा में व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं । आगमों के अतिरिक्त धर्म, दर्शन, संस्कृति और आदि विषयों पर भी अनेक ग्रन्थों का संगुम्फन किया है आपकी श्रुत सेवा 'चिरस्मरणीय रहेगी । स्थानकवासी समाज के आप युगान्तरकारी साहित्यकार रहे हैं । आपकी साहित्यसर्जना समाज की विशेष सम्पत्ति है और समाज को उस पर स्वाभिमान भी है। श्रुत सेवा और संघ- सेवा उनके तेजस्वी जीवन का एक महान आदर्श था । एक महान् प्रेरणा-स्रोत था ।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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