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________________ प्रज्ञापुरुष आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज | १७ हुए थे । साहित्य को वाणी मिली, दर्शन को भाषा मिली और जैनागमों को एक प्रौढ़ भाषाकार मिला । उनके जीवन में प्रेम भी अपार था, तो प्रहार की चोटें भी कुछ कम न थीं । लाखों भक्तों ने उन्हें प्रेम का उपहार दिया, तो चन्द राह भूले लोगों ने उन्हें प्रहार देना पसन्द किया । परन्तु आचार्य श्री वह शिवशंकर थे, जिसने जनकल्याण के लिए स्वयं विषपान करके दूसरों को सदा अमृत ही बांटा। समाज का विष लेकर, निरन्तर उसे अमृत प्रदान करते रहना - आचार्यश्री का सहज शील स्वभाव था । शासक: सेवक वे श्रमण संघ के एकमात्र सार्वभौम सत्ता प्राप्त सम्राट होकर भी अपने आप को एक सेवक ही मानते रहे थे । अपनी सत्ता का सदुपयोग ही सदा उन्होंने किया, दुरुपयोग कभी नहीं । सत्ता की लिप्सा उनके मन में कभी नहीं रही, फिर भी लोग उन्हें सत्ताधीश कहते थे । आचार्यश्री का जीवन उस महकते गुलाब की तरह था, जो स्वयं तो तीखे काँटों की नुकीली सेज पर सोता हैं, पर दूसरों को उन्मुक्त-भाव से अपनी सुषमा और सुरभि बाँटता रहता है । वे समाज के अन्धकार से लड़ने वाले एक ज्योतिर्मय अमर प्रकाश-पुंज थे । उनका जीवन आलोकमय था । 1 आचार्य श्री का व्यक्तित्त्व बड़ा ही अद्भुत, विलक्षण एवं प्रभावशाली था । जो व्यक्ति एक बार उनके परिचय में आ गया, वह सदा के लिए उनका अनुयायी बन गया । 1 बातचीत में वे बड़े पटु और साथ ही विनोदप्रिय भी थे । उनके मधुर व्यंग्यवाणों से किसी का भी बच रहना सम्भव न था । बातचीत के प्रसंग पर वे बीच-बीच में रूपक तथा लघुकथा एवं हास्यकथा कहकर गम्भीर वातावरण को भी सरस, सुन्दर . और मधुर बनाने की कला में दक्ष थे । बोलते समय उनकी वाणी से फूलों की वर्षा होती थी । उनकी आत्मीयता बहुत विशाल थी - उसमें स्व-पर की भेद - रेखा नहीं थी । सब उनके थे। क्योंकि वे स्वयं सबके थे । व्यक्तित्व को बाह्य छंवि 1 गौर वर्ण, मँझला कद, भरा-पूरा दमकता चमकता शरीर । पैनी नाक और उपनेत्र से झाँकते-ह ँसते सुन्दर नेत्र । कपोल - पाली पर खेलती मधुर मुस्कान । सिर पर घुंघराली चाँदी सी केश राशि । शरीर पर खादी के धवल- विमल वस्त्र । हंस जैसी मन्द गति । उनके व्यक्तित्व में सब कुछ सुन्दर ही सुन्दर था । विचारों में जुम्बक जैसा आकर्षण, वाणी में महकते सुरभित कुसुमों-सा वर्षण और कर्म में योगी सी एकाग्रता । यह सब कुछ उनके बाहरी व्यक्तित्व का एक मधुर जादू था । सीधा-सादा रहन-सहन, सीधी-सादी चाल-ढाल और सीधा-सरल व्यवहार, निश्चय ही उनके पावन पवित्र व्यक्तित्व का एक मधुर संस्मरण हैं ।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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