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उपाध्याय का सर्वांगीण स्वरूप : २०५
(१) औपपातिक सूत्र - यह आचारांग सूत्रका उपांग माना जाता है । इसमें चम्पानगरी, कोणिक राजा, भगवान् महावीर, साधु के गुण, तप के के १२ भेद, तीर्थंकरों के समवसरण की रचना, चार गतियों में उत्पन्न होने के कारण, मुक्ति-प्राप्ति की प्रक्रिया, समुद्घात, मोक्षसुख आदि विषयों का विस्तृत वर्णन किया गया है ।
(२) राजप्रश्नीय सूत्र - यह सूत्रकृतांग का उपांग माना जाता है । इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमण श्री केशीस्वामी के साथ श्वेताम्बिका नगरी के भूतपूर्व नास्तिक राजा प्रदेशी का आत्मा के विषय में सुन्दर संवाद उल्लिखित है ।
(३) जीवाभिगम - इसे स्थानांग सूत्र का उपांग माना जाता है । इसमें ढाई द्वीप, चौबीस दण्डक, विजयपोलिया आदि का वर्णन है ।
(४) प्रज्ञापना सूत्र - इसे समवायांग सूत्र का उपांग माना जाता है । इसके छत्तीस पद हैं, इसमें जीव और अजीव के सम्बन्ध में विविध पहलुओं से प्रज्ञापना - प्ररूपणा की गई है ।
(५) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र - इसका विषय इसके नाम से ही स्पष्ट है । इसे भगवती सूत्र का उपांग माना जाता है । इसमें जम्बूद्वीप के क्ष ेत्र, पर्वत, नदी आदि का विस्तृत वर्णन है । इसके अतिरिक्त छह आरों का, ऋषभदेव भगवान्, भरत चक्रवर्ती द्वारा षट खण्ड साधन तथा यौगलिक मनुष्यों का भी वर्णन है ।
(६) चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र - इसे ज्ञाताधर्मकथांग का उपांग माना जाता है । इसमें चन्द्रमा के विमान, मण्डल, गति, नक्षत्र, योग, ग्रहण, राहु तथा चन्द्र के पाँच संवत्सर आदि विषयों का वर्णन है ।
(७) सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र - इसे भी ज्ञाता धर्मकथांग सूत्र का दूसरा उपांग माना गया है । इसमें सूर्य के विमान मण्डलों का उत्तरायण दक्षिणायन, पर्वराहु, गणितांग, दिनमान, सूर्यसंवत्सर आदि का सविस्तार वर्णन है ।
(८) निरयावलिकासूत्र - यह उपासकदशांग का उपांग माना जाता है । इसके दस अध्ययन हैं । इनमें श्रेणिक राजा के काल, सुकाल आदि नरकगामी राजकुमारों का वर्णन है ।
Metfore के द्वारा अपने पिता श्रेणिक को मारकर स्वयं राजा बनने एवं अपने छोटे भाई हल्ल-विहल्ल कुमार से नवसरा हार और सिंचानक हाथी बलात् लेने के लिए चेटक राजा के साथ घोर संग्राम करने का विस्तृत वर्णन