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२०४ : जैन तत्त्वकलिका - द्वितीय कलिका
महापुरुषों ने निर्वाण पद प्राप्त किया है, उनके पूर्व - जीवन का और दीक्षाग्रहण के पश्चात् मोक्ष प्राप्ति तक के जीवन का वर्णन है ।
(E) अनुत्तरोपपातिकदशांग — इस सूत्र में उन व्यक्तियों का वर्णन है जो तप-संयम के बल पर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध विमानों में उत्पन्न हुए हैं। इसमें ३ वर्ग तथा ३३ अध्ययन हैं । (१०) प्रश्नव्याकरणसूत्र - इस सूत्र के दो तस्कन्ध हैं । प्रथम श्रु तस्कन्ध में ५ आस्रवद्वारों के ५ अध्ययन हैं, तथा दूसरे श्रुतस्कन्ध में पाँच संवरद्वारों के ५ अध्ययन हैं ।
(११) विपाक सूत्र - इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं । पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक । दुःखविपाक में पापी जीवों का तथा सुखविपाक पुण्यशाली जीवों का वर्णन है ।
(१२) दृष्टिवाद - इस अंगशास्त्र का वर्तमान समय में विच्छेद हो गया है । इसमें पांच वस्तु ( वत्थु ) थीं । वे इस प्रकार - (१) परिक्रम, (२) सूत्र, (३) पूर्व, (४) अनुयोग और (५) चूलिका ।
इसको तृतीय वस्तु (वत्) में चौदह पूर्वी का समावेश था। चौदह पूर्वी के नाम इस प्रकार हैं— (१) उत्पादपूर्व, (२) आग्रायणीयपूर्व, (३) वीर्य - प्रवाद पूर्व, (३) अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व, (५) ज्ञानप्रवाद पूर्व, (६) सत्यप्रवाद पूर्व, (७) आत्मप्रवाद पूर्व, (८) कर्मप्रवाद पूर्व, (७) प्रत्याख्यान पूर्व, (१०) विद्याप्रवाद पूर्व, (११) कल्याणप्रवाद पूर्व, (१२) प्राणप्रवाद पूर्व, (१३) क्रियाविशाल पूर्व, और (१४) लोकबिन्दुसार पूर्व ।
जिस समय ये बारह अंग पूर्ण रूप से विद्यमान थे, उस समय उपाध्यायजी इन सब में पारंगत होते थे । वर्तमान में विद्यमान ग्यारह अंगों का जितना - जितना भाग अवशेष रहा है । उसके ज्ञाता और पाठक को उपाध्याय कहते हैं ।
द्वादश उपांगों का वर्णन
जिस प्रकार शरीर के मुख्य अंगों के अतिरिक्त हाथ, पैर आदि उपांग होते हैं, उसी प्रकार आगम पुरुष के आचारांग आदि बारह अंगों के बारह उपांग हैं । जिस अंग में जिस विषय का कथन किया गया है। उस विषय का आवश्यकतानुसार विशेष कथन उसके उपांग में है । '
१ कुछ आचार्यों के मतानुसार ११ अंग, १२ उपांग, चरणसप्तति और करण सप्तति यों कुल मिलाकर २५ गुण उपाध्यायजी के हैं । इसलिए यहाँ उपांगों का परिचय दे रहे हैं । - संपादक