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उपाध्याय का सर्वांगीण स्वरूप : २०३
चारित्रचार (चारित्र-विषयक) तप-आचार (तप विषयक), वीर्याचार, (बलवीर्य विषयक), गोचर्याचार (भिक्षा-विधि), विनय विचार (विनय विषयक शिक्षा), कर्मक्षय शिक्षा, भाषा विषयक शिक्षा का वर्णन है । साथ ही श्रमण भगवान् महावीर की कठोर साधना और चर्या का सुन्दर वर्णन है।
(२) सूत्रकृतांग- इसके दो श्र तस्कन्ध हैं। प्रथम श्र तस्कन्ध के १६ और द्वितीय श्र तस्कन्ध के ७ अध्ययन हैं। इसके प्रथम श्र तस्कन्ध में समय, वैतालीय, उपसर्ग परिज्ञा, स्त्री परीषह परिज्ञा, नरक विभक्ति, वीर स्तुति, कुशील परिभाषा, वीर्याध्ययन, धर्म, समाधि, मोक्ष मार्ग, समवसरण, याथातथ्य, ग्रन्थ, आदानीय और गाथा, ये १६ अध्ययन हैं।
इसके द्वितीय श्र तस्कन्ध में पुण्डरीक, क्रियास्थान, आहार परिज्ञा, प्रत्याख्यान, अनाचार, आद्रककुमार और उदक पेढालपुत्र ये ७ अध्ययन हैं ।
(३) स्थानांग सूत्र- इसमें एक ही श्रु तस्कन्ध है और दस स्थान हैं । एक से लेकर दस संख्या वाले बोल हैं।
(४) समवायांग सूत्र-इसमें भी एक ही श्र तस्कन्ध है । अलग-अलग अध्ययन नहीं है । इसमें एक से लेकर सौ, हजार, लाख और करोड़ों की संख्या वाले बोलों का निर्देश है। द्वादशांगो की विषय सूची भी इसमें है।
(५) व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र- इस अंग में एक श्रु तस्कन्ध, ४१ शतक, और एक हजार उद्देशनकाल हैं। इसमें इहलौकिक, पारलौकिक, अध्यात्म, नीति, नियम, समत्व, लेश्या, योग आदि विविध विषयों से सम्बन्धित ३६००० हजार प्रश्नोत्तर हैं। यह शास्त्र अंगशास्त्रों में सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण है।
(६) ज्ञाताधर्मकथांग-इस सूत्र के दो श्रु तस्कन्ध हैं । प्रथम श्रु तस्कन्ध में १९ अध्ययन हैं और द्वितीय श्र तस्कन्ध में २०६ अध्ययन हैं । भगवान् पार्श्व नाथ की २०६ आर्याएँ संयम में शिथिल होकर देवियाँ हुईं, उनका १० वर्गों में वर्णन हैं । इसमें ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथाएँ हैं।
(७) उपासकदशांग-इस अंग में एक श्र तस्कन्ध और दस अध्ययन हैं। इन दस अध्ययनों में भगवान महावीर के दस श्रेष्ठ श्रमणोपासकों का वर्णन है। इन दस श्रावकों की दिनचर्या तथा उनके द्वारा गृहीत व्रतों का सुन्दर वर्णन हैं।
(८) अन्तकृदशांग-इस अंगशास्त्र में एक थ तस्कन्ध है, ८ वर्ग हैं और ६० अध्ययन हैं । इसमें अन्त समय में केवलज्ञान प्राप्त कर जिन ९०