SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु स्वरूप : १६५ (११) ध्यानतप एकाग्रतापूर्वक चिन्तन में मन का निरोध करना-चित्तवृत्ति को एकाग्र करना ध्यान है।' ध्यान के मुख्य ४ भेद हैं-आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान। आत्त ध्यान और रौद्रध्यान ये दो ध्यान अशुभ तथा हेय हैं, इन दोनों ध्यानों से आत्मा को बचाना, मन को इन दोनों ध्यानों में प्रवृत्त होने से रोकना, समभाव में स्थिर करना एक प्रकार का तप होने से इन दोनों को भी तप कहा जा सकता है किन्तु वास्तव में इनको न करना ही तप माना जाना चाहिए। आत्त ध्यान और रौद्रध्यान, इन दोनों के प्रत्येक के चार-चार प्रकार और चार-चार लक्षण हैं। धर्मध्यान और शुक्लध्यान ये दोनों शुभ ध्यान हैं। धर्मध्यान के ४. पाद हैं-आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय। धर्मध्यान के ४ लक्षण हैं—आज्ञारुचि, निसर्गरुचि, उपदेशरुचि और सूत्ररुचि। ___धर्मध्यान के चार आलम्बन हैं-वाचना, पृच्छना, परिवर्तना और अनुप्रेक्षा। धर्मध्यांन की ४ अनुप्रेक्षाएँ हैं-अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा, एकत्वानुप्रेक्षा और संसारानुप्रेक्षा। __शुक्लध्यान के चार पाद हैं—(१) पृथक्त्ववितर्क-सविचार, (२) एकत्ववितर्क अविचार (३) सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाती और (४) समुच्छिन्नकिया निवृत्ति। शुक्लध्यान के ४ लक्षण हैं-(१) विवेकलक्षण, (२) व्युत्सर्गलक्षण, (३) अव्यथलक्षण और (४) असम्मोहलक्षण । शुक्लध्यान के चार आलम्बन-शान्ति, मुक्ति, (निर्लोभता), आर्जप, और मार्दव। शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ-(१) अपायाऽनुप्रेक्षा, (२) अशुभानप्रेक्षा (३) अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा और (४) विपरिणामानुप्रेक्षा। धर्मध्यान और शुक्लध्यान के ३२ भेद उपादेय हैं, जबकि आर्तध्यान १ उत्तमसंहननस्य काग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् । –तत्त्वार्थ० अ० ६ सूत्र २७
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy