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गुरु स्वरूप : १५५
(२) भाषासमिति—यतनापूर्वक बोलना। भाषासमिति का पालन ४ प्रकार से किया जाता है। द्रव्य से-कर्कश, कठोर, हिंसाकारी, छेदक, भेदक, पीडाकारी, सावध, मिश्र, क्रोधकारक, मानकारक, मायाकारक, लोभकारक, राग-द्वषकारक, मुखकथा (अप्रीतिकारी सुनी-सुनाई बात), चार प्रकार की विकथा यों १६ प्रकार की भाषा न बोलना। क्षेत्र से—मार्ग में चलते समय वार्तालाप न करना, काल से-एक पहर रात्रि व्यतीत हो जाने के पश्चात् जोर-जोर से उच्च स्वर से न बोलना । भाव से-राग-द्वषरहित अनुकूल, सत्य, तथ्य, शुद्ध वचन बोलना।
(३) एषणा समिति-शय्या (स्थान), वस्त्र, पात्र, आहार आदि की गवेषणा, ग्रहणषणा और परिभोगैषणा करके दोष रहित सेवन करना एषणासमिति है। इसके पालन के चार प्रकार हैं-द्रव्य से-४७'दोषों (४२ आहार के और पाँच मण्डल के), अथवा इनके सहित ६६ दोषों से रहित शय्या, आहारादि का उपभोग करना, क्षेत्र से-दो कोस से आगे आहार-पानी ले जाकर सेवन न करना, काल से-प्रथम प्रहर में लाया हुआ आहारादि अन्तिम (चौथे) पहर में सेवन न करना और भाव से-संयोजना आदि मण्डल के पाँच दोषों से दूर रहकर आहारादि का उपभोग करना । विधिपूर्वक यथाप्राप्त आहारादि में संतोष करना, आहारादि पर राग-द्वोष न करना।
(४) आदान-भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति-उपकरणों को यतनापूर्वक उठाना और रखना । उपकरण दो प्रकार के होते हैं-अवग्रहिक (सदा उपयोग में आने वाले, जैसे-रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि) और औपग्रहिक (प्रयोजनवश उपयोग में आने वाले जैसे—पट्टा, चौकी आदि)। जो भी उपकरण अपने निश्राय में हों, उनका प्रतिलेखन-प्रमार्जन करना तथा ममत्व रहित होकर उपयोग करना या रखना इस समिति का उद्देश्य है। इस समिति के पालन के चार प्रकार हैं-द्रव्य से-भाण्ड, उपकरण यतनापूर्वक ग्रहण करे, रखे, व्यर्थ ही जोर-जोर से पटक कर तोड़े-फोड़े नहीं। क्षेत्र से-गृहस्थ के घर में रखकर ग्रामानुग्राम विहार न करे, क्योंकि ऐसा करने से प्रतिलेखनादि नहीं हो पाती। काल से-उभयकाल वस्त्र-पात्रादि की प्रतिलेखना विधिपूर्वक करे। भाव से उपकरणों को बिखेरकर न रखे, जो उपकरण रखे, उस पर भी ममता-मूर्छा न करे।
(५) परिष्ठापनिका समिति-उच्चार (बड़ी शंका), प्रस्रवण (लघुशंकापेशाब), प्रस्वेद, (पसीना), मैल, कान-नाक का मैल, वमन, कफ, बाल, भुक्तशेष जलादि, मृतकशरोर आदि अनुपयोगी वस्तुओं का यतनापूर्वक परिष्ठापन करना-डालना पंचम समिति है। चार प्रकार से इसका पालन