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गुरु स्वरूप : १४७
नपुसकसेवित स्थान, शयन और आसन से कामोद्दीपन की संभावना रहती है, अतः उनका त्याग करना।
(२) रागयुक्तस्त्रीकथावर्जनता-स्त्री के हाव-भाव, विलास और शृगार आदि की काम-रागवद्धक बातें या कथाएँ न करना; न ही स्त्रियों में बैठकर कथा करना अन्यथा स्त्रीकथा करने से किसी भी समय उसका मन विचलित होने की संभावना है।
(३) मनोहरइन्द्रियालोकन वर्जनता-स्त्रियों की मनोरम इन्द्रियों, हाथपैर, नेत्र आदि अंगों, रूप, वर्ण, यौवन, संस्थान एवं कामचेष्टाओं को विकारदृष्टि से न देखना, अन्यथा कामोद्दीपन की सम्भावना है, जिससे ब्रह्मचर्यसमाधि का नाश हो सकता है।
(४) पूर्वरतविलास (क्रोड़ा) अननुस्मरणता ब्रह्मचर्य स्वीकार करने से पूर्व के भुक्त या साहित्य में पठित भोग-विलासों, कामचेष्टाओं एवं रतिक्रीड़ा आदि का स्मरण न करना; क्योंकि ऐसा करने से कामविकार जागृत होगा, ब्रह्मचर्यरक्षा में बाधा उत्पन्न होगी।
(५) प्रणोतरस भोजन (आहार) वर्जनता-कामोत्तेजक, उन्मादवद्धक (मादक द्रव्यों) एवं विकृतिवद्धक (दधि-दुग्ध-घतादि) सरस, स्निग्ध एवं स्वादिष्ट या मर्यादा से अधिक खान-पान का त्याग करना; अन्यथा कामविकार उत्पन्न होने से उसका परिणाम ब्रह्मचारी के लिए हितकर नहीं होगा। - अतः इन पाँच भावनाओं द्वारा ब्रह्मचर्यमहाव्रत की सुरक्षा करनी चाहिए।
ब्रह्मचर्यव्रत के भंग से प्रायः पांचों महाव्रतों का भंग हो जाता है। इसलिए ब्रह्मचर्यमहावत साधु-साध्वी के लिए सबसे महान् व्रत है।
__आचार्यश्री मैथुन-सेवन से सर्वथा विरत होकर अहर्निश ब्रह्मचर्य में रत रहते हैं।
पंचम-अपरिग्रह महाव्रत इसका शास्त्रीय नाम है-सर्व-परिग्रह-विरमण महाव्रत ।' अर्थात्-- अल्प हो या बहुत, छोटा हो या बड़ा, सचित्त हो या अचित्त, विद्यमान हो
१ सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमण ।