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________________ गुरु स्वरूप : १३१ संयम) करने वाले, नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियों (बाड़ों) के धारक, चार प्रकार के कषायों से मुक्त (विजेता), पांच महाव्रतों से युक्त, पंचविध आचार-पालन में समर्थ, पांच समितियों और तीन गुप्तियों से युक्त, इस प्रकार, इन छत्तीस आध्यात्मिक गुणों से सम्पन्न, जो गुरु होते हैं, वे आचार्य कहलाते हैं। पंचेन्द्रियनिग्रह पाँचों इन्द्रियों पर, विशेषतः पाँचों इन्द्रियों के विषयों पर संयमनियंत्रण करना पंचेन्द्रियनिग्रह है। इन्द्रियाँ पाँच हैं-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय । श्रोत्रेन्द्रियनिग्रह जिससे शब्द सुना जाए, उसे श्रोत्रेन्द्रिय कहते हैं। श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह का यह मतलब नहीं कि कान से शब्द सुने ही नहीं, किन्तु यह है कि कानों में जो शब्द पड़ें, उनके विषय में राग (आसक्ति-मोह) या द्वष (घणा-मत्सर) न करे। ' श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है, वह तीन प्रकार का है-जीवशब्द, अजीवशब्द और मिश्रशब्द। मनुष्य, पशु-पक्षी आदि का शब्द जीवशब्द, दीवार आदि के गिरने से, पत्थर आदि परस्पर टकराने आदि से जो शब्द होता है, वह अजीवशब्द और वाद्य बजाने वाले और वाद्य का मिला हुआ स्वर मिश्रशब्द कहलाता है। __श्रोत्रेन्द्रिय के १२ विकार हैं। वे इस प्रकार हैं -जीवादि तीनों शब्दों के शुभ-अशुभ दो भेद होने से ६ भेद हुए। इन छहों पर राग और द्वेष करने से ६४२=१२ भेद श्रोत्रेन्द्रिय विकार के हुए। चक्षुरिन्द्रिय-निग्रह चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप है इसका भी यह अर्थ है कि आँखों के समक्ष जो शुभ-अशुभ या इष्टानिष्टरूप दिखाई दे उस पर राग-द्वेष न करे । आँखें बन्द कर ले, यह अर्थ नहीं है। चक्षुरिन्द्रिय के ५ विषय हैं- काला, नीला, लाल, पीला और सफेद वर्ण (रंग या रूप) इनके प्रत्येक के सजीव, अजीव और मिश्र के भेद से ५४३= १५ भेद हुए। ये पन्द्रह कभी शुभ और कभी अशुभ होते हैं । इसलिए १५४२=३० भेद हुए। इन तीसों पर राग और द्वेष होता है, इसलिए ३०४२ =६० भेद चक्ष रिन्द्रिय-विकार के होते हैं। घ्राणेन्द्रियनिग्रह जिसके द्वारा गन्ध का ग्रहण किया जाए, उसे घ्राणेन्द्रिय कहते हैं।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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