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________________ १२४ : जैन तत्त्वकलिका-द्वितीय कलिका ध्येय तक पहुँचने के लिए धर्म की सही राह गुरु बताते हैं, धर्म का स्वरूप समझाते हैं, धर्माचरण की प्रेरणा देते हैं, तथा धर्माचरण के दौरान जो विघ्न-बाधाएँ या कठिनाइयाँ आती हैं, उन्हें दूर करने के उपाय भी बताते हैं। कष्ट से घबराये हुए अनिष्टसंयोग और इष्टवियोग से चिन्तित और शोकमग्न व्यक्ति को आश्वासन देते हैं, धैर्यपूर्वक उन्हें सहन करने की प्रेरणा भी देते हैं तथा निराश और निरुत्साह व्यक्ति का उत्साह बढ़ाते हैं, उसमें साहस की बिजली भर देते हैं। धर्म और अध्यात्म के विषय में तथा समाज, संस्कृति और नीति के विषय में जिज्ञासु व्यक्तियों की शंकाओं का युक्तियुक्त समाधान करके उन्हें धर्मानुप्राणित मार्गदर्शन भी देते हैं। इस प्रकार स्व-पर कल्याण का, परोपकार का गुरुतर कार्य गुरु करते हैं । वे प्रत्येक विषय में प्रेरणा, निर्देश, उपदेश या मार्गदर्शन जो भी देते हैं, वह सब अहिंसा-सत्यादि शुद्ध धर्म का या नीतियुक्त धर्म का पुट लिये हए होता है। इसलिए गुरु को धर्म का एक पुष्ट आलम्बन कहा गया है। वे स्वयं कष्ट सहकर तथा भूखे प्यासे रहकर भी धर्म, संघ, समाज और राष्ट्र की महान् एवं बहुमूल्य सेवा करते हैं। गुरु धर्मदेव हैं __ श्रमण शिरोमणि जगद्गुरु विश्ववन्द्य भगवान् महावीर ने उन्हें 'धर्मदेव' कहा है। भगवतीसूत्र में इस सम्बन्ध में भगवान् महावीर के साथ गणधर इन्द्रभूति गौतम का महत्त्वपूर्ण संवाद मिलता है। श्री गौतमस्वामी श्रमण भगवान् महावीर से पूछते हैं-'भगवन् ! इन (धर्मोपदेशक धर्मगुरुओं) को धर्मदेव क्यों कहा जाता है ?'' उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-'गौतम ! ये जो अनगार (घरबार आदि छोड़कर साधुधर्म में प्रवजित) भगवन्त हैं, वे ईर्यासमिति, भाषासमिति आदि पाँच समितियों से सम्यक् युक्त (समित) है, मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तियों से गुप्त (अपनी आत्मा को सुरक्षित) रखते हैं, यावत् साधुओं के समस्त गुणों से सम्पन्न, गुप्तब्रह्मचारी हैं, इस (धर्मधुरन्धरता के) कारण इन्हें 'धर्मदेव कहा जाता है।'' १ (प्र०) 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ धम्मदेवा धम्मदेवा ?' (उ०) "गोयमा ! जे इमे अणगारा भगवंतो इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारी; से तेणठेणं एवं वुच्चइ धम्मदेवा।" -भगवतीसूत्र, शतक १२, उद्देशक ६
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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