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सम्पादकीय | १३
सब उदाहरणों पर से फलित होता है कि तत्त्व को अमुक संख्या में बाँधा नहीं जा सकता । प्रत्येक वस्तु के साथ तत्त्व का प्रश्न अनुस्यूत है।
तत्त्वों की संख्या वास्तव में तत्त्वों की निश्चित संख्या नहीं है । तत्त्व कितने हैं ? इस प्रश्न का उत्तर आगमों और विविध ग्रन्थों में विभिन्न रूप से दिया है ! एक शैली के अनुसार तत्त्व दो हैं-१. जीव और २. अजीव । दूसरी शैली के अनुसार तत्त्व ७. हैं-- १. जीव, २. अजीव, ३. आस्रव ४. बन्ध, ५. संवर, ६. निर्जग और ७. मोक्ष । तीसरी शैली के अनुसार तत्त्वों की संख्या पुण्य और पाप सहित नौ हैं। उत्तराध्ययन आदि आगम साहित्य में तीसरी शैली उपलब्ध होती हैं। भगवती, प्रज्ञापना आदि में जहाँ श्रावकों के व्रतधारणोत्तर जीबन का वर्णन आता है, वहाँ ११ तत्त्वों के जानने का उल्लेख आता है । यथा-१. जीव, २. अजीव, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आस्रव ६. संवर ७. निर्जरा, ८. क्रिया, ६. अधिकरण १०. बन्ध और ११. मोक्ष में कुशलता।
वास्तव में तत्व दो ही हैं—जीव और अजीव । पुण्य से लेकर मोक्ष तक के सात तत्व स्वतन्त्र नहीं हैं, वे जीव और अजीव के अवस्था-विशेष हैं ।
देव, गुरु और धर्म : तीन तत्व दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो १. देव २. गुरु और ३. धर्म ये तीन तत्व मोक्षप्राप्ति में सहायक एवं साधक हैं । देव और गुरु; ये जीव के ही मुक्त और कर्ममुक्ति के लिए प्रयत्नशील; दो रूप हैं । अब रहा धर्मतत्व-जिसमें सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्ररूप लोकोतर धर्म तथा नीति-धर्म-प्रधान लोकिक धर्मों का समावेश हो जाता है। साथ ही श्रुतधर्म में उपर्युक्त नौ तत्व, षड्द्रव्य, प्रमाण, नय, निक्षेपादि तथा परिणामिनित्यवाद आदि सब तत्वों का समावेश हो जाता है, चारित्रधर्म में अहिंसा, सत्यादि सभी शाश्वत धर्मों का समावेश हो जाता है । अस्तिकाय धर्म में पंचास्तिकाय, आत्मवाद, लोकवाद कर्मवाद और क्रियावाद आदि का समावेश हो जाता है।
देव और गुरु तत्व देवतत्व मोक्षसाधक के लिए इसलिए ग्राह्य है कि उसके बिना मुमुक्षु के सामने कोई आदर्श एवं व्यवहार का सेतु नहीं रहता। देवतत्व में मोक्षप्राप्त सिद्ध या वीतराग अर्हन्त देव आते हैं, जो साधक की मोक्षयात्रा में प्रकाशस्तम्भ हैं और गुरुतत्वजिसमें आचार्य, उपाध्याय और साधु आते हैं, मोक्षार्थी के लिए मोक्षसाधना के आदर्श हैं । इन दोनों तत्वों को अपनाये बिना धर्मतत्व को भलीभांति हृदयंगम करना, जानना और आचरित करना कठिनतर हैं । इसलिए सर्वतत्वों के तत्वज्ञ तथा तत्वदर्शी देवाधिदेवों और धर्मदेवों गुरुओं का मार्गदर्शन धर्मतत्व को सर्वांगरूप से जानने हेतु नितान्त आवश्यक है।
धर्मतत्व की शाश्वत-अशाश्वत धारा इस विश्व में कुछ तत्व शाश्वत है और कुछ अशाश्वत । धर्मतत्व-जो कि सीधा मोक्ष से सम्बन्धित शाश्वत के संगीत का मधुरलय है । परन्तु भगवान् महावीर