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सिद्धदेव स्वरूप : ६५
सिद्ध, बुद्ध, अजर, अमर, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और अनन्तशक्ति सम्पन्न इत्यादि शुभ नामों से पुकारा जाता है । वे ३१ गुण' इस प्रकार हैं
(१) सिद्ध परमात्मा के आभिनिबोधिक ज्ञानावरण क्षीण हो चुका है । अर्थात् ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच प्रकृतियों में से आभिनिबोधिक ज्ञान के २८ भेद हैं, उन पर आए हए कर्म परमाणुओं के आवरणों का क्षय हो चुकता हैं।
(२) श्रु त ज्ञानावरण (श्रु तज्ञान के १४ भेद हैं, उन पर आए हुए आवरण) का क्षय हो चुका है।
(३) अवधिज्ञान (के ६ भेदों) पर आए हुए आवरण का क्षय हो चुका है।
(४) मनःपर्यवज्ञान (के दो भेदों) पर आये हुए आवरण का क्षय हो चुका है। . (५) केवलज्ञान (के केवल एक भेद) पर आए हुए आवरण का भी क्षय हो चुका है।
ज्ञानावरण की पाँचों प्रकृतियों के आवरण क्षोण (दूर) हो जाने से सिद्ध भगवान् को सर्वज्ञ कहा जाता है ।
(६) चक्षुदर्शन पर आया हुआ आवरण सिद्ध परमात्मा का क्षय हो चुका है।
(७) चक्ष वर्जित श्रोत्रेन्द्रियादि इन्द्रियों पर आया हुआ आवरण (अचक्ष र्दशनावरण) भी क्षीण हो चुका है।
(८) अवधिदर्शन पर आया हुआ आवरण भी निमूल हो गया है ।
१ एक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता, तं जहा-खीणे आभिणि-बोहियणाणावरणे,
खीणे सुयणाणावरणे, खीणे ओहिणाणा-वरणे, खीणे मणपज्जवणाणावरणे खीणे केवलणाणावरणे; खीणे चक्बुदंसणावरणे, खीणे अचक्खुदंसणावरणे, खीणे ओहिदसणावरणे, खीणे केवलदसणावरणे, खीणे निदा, खीणे निदा-निदां, खीणे पयला, खीणे पयला-पयला, खीणे थीणद्धी; खीणे सायावरणिज्जे, खीणे असायावरणिज्जे; खीणे दंसणमोहणिज्जे, खीणे चरित्तमोहणिज्जे; खीणे नेर' इआउए, खीणे तिरियाउए, खीणे मणुस्साउए, खीणे देवाउए; खीणे उच्चागोए, खीणे निच्चागोए; खीणे सुभनामे, खीणे असु भणामे; खीणेदाणांतराए, खीणे लाभांतराए, खीणे भोगांतराए खीणे उवभोगतराए खीणे वीरिअंतराए ।
-समवायांगसूत्र ३१ वां समवायाध्ययन ।