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अरिहन्तदेव स्वरूप : ८७
पवित्र स्थान में भगवान् महावीर ने अपनी अन्तिम धर्मदेशना दी, जो उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से प्रसिद्ध है । तत्पश्चात् कार्तिक वदी अमावस्या की रात्रि में इस भौतिक शरीर, जन्म-मरण रूप संसार और कर्मों का सदा के लिए त्याग करके निर्वाण प्राप्त किया । उनके द्वारा स्थापित चतुविध धर्म - संघ का भार उनके मुख्य शिष्य गणधर सुधर्मास्वामी ने सँभाला ।
इन चार तीर्थंकरों के जीवन की झाँकी पर से अरिहन्तदेवों की विशेषताओं का स्पष्ट रूप से पता लग जाता है ।