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७८ : जैन तत्त्वकलिका
तीर्थंकर अरिष्टनेमि अपने समस्त कर्मों का अन्त करके गिरनारपर्वत से मुक्त हुए। (३) तेईसवें तीर्थंकर : पुरुषादानीय भगवान् श्री पार्श्वनाथ
तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष हैं ।' उनका तीर्थप्रवर्तन भगवान् महावीर से २५० वर्ष पहले हुआ था। आज से लगभग ३ हजार वर्ष पहले वाराणसी नगरी में आपका जन्म हुआ था। प्रारम्भ से ही आपकी चित्तवृत्ति वैराग्य से ओत-प्रोत रहती थी।
एक बार आप गंगा के किनारे घूम रहे थे। वहाँ पर कमठ नामक तापस लक्कड़ जलाकर तप रहा था। उसके साथ उसके कुछ शिष्य भी थे। राजकुमार पार्श्व उसके पास पहुँचे और बोले-"आप इन लक्कड़ों को जला कर क्यों जीवहिंसा करते हैं ?"
__राजकुमार की बात सुनकर कमठ तापस बहुत झल्लाया और बोला-“तुम राजकुमार हो, इस तपस्या के बारे में तुम्हें कुछ ज्ञान नहीं है । अगर तुम्हें कुछ ज्ञान हो तो बताओ, इसमें कहाँ जीव है ?"
इस पर राजकुमार पार्श्व ने कमठ तापस से कुल्हाड़ी लेकर ज्यों ही जलते हुए, लक्कड़ को चीरा उसमें से नाग और नागिन का जलता हुआ जोड़ा निकला। राजकुमार ने उन्हें मरणोन्मुख जानकर णमोकारमंत्र सुनाया। ये दोनों नाग-नागिन मरकर धरणेन्द्र-पद्मावती बने।
इस घटना से राजकुमार पार्श्व का हृदय द्रवित हो गया। जीवन की अनित्यता ने आपके हृदय को संसार से विरक्त कर दिया। अतः सांसारिक काम-भोग और राज्यसुख आदि को निःसार समझकर आप प्रवजित हो गये।
___ मोक्षमार्ग एवं तप संयम की साधना करते हुए आप एकाकी विचरण करने लगे।
एक बार आप अहिच्छत्र के वन में ध्यानस्थ थे । आपको देखते ही पूर्वजन्म के वैरी मेघमाली देव (कमठ तापस का जीव) के मन में पूर्वजन्म का वैरभाव भड़क उठा। उसने भगवान् के ध्यान में विघ्न डालने के लिए पत्थरों की वर्षा की। जब इससे आप विचलित न हुए तो मूसलाधार वर्षा करने लगा। चारों ओर पानी ही पानी हो गया। आपके गले तक पानी आ गया। इस घोर उपसर्ग के समय धरणेन्द्रदेव और पद्मावतीदेवी अपने
| That Parswa was a historiceal person, is now admitted by all as
very probable. -डॉ. जेकॉबी, Sacred Books of the East ;Vol. XLY