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________________ ७६ : जैन तत्त्वकलिका ह इतिहासकारों के मतानुसार वेदों का अस्तित्व आज से पाँच हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है । वेदों में स्वस्तिवाचन में अरिष्टनेमि के तार्क्ष्य विशेषण लगाकर उनसे कल्याण की कामना की गई है । श्रीकृष्ण का वैदिक परम्परा के साहित्य में बहुत वर्णन है उसमें भी श्री अरिष्टनेमि के जीवन की झांकी मिल जाती है । जैनागमों के अनुसार श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक गुरु बाईसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि थे ।' छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक गुरु घोर आंगिरस प्रतीत होते हैं । घोर आंगिरस ने श्रीकृष्ण को आध्यात्मिक विद्या की त्रिपदी का उपदेश दिया है- 'तू अक्षत अक्षय है, अच्युतअविनाशी है और प्राणसंशित अतिसूक्ष्म प्राण है । इस त्रिपदी को सुनकर श्रीकृष्ण आत्मविद्या के सिवाय अन्य विद्याओं के प्रति तृष्णाहीन हो गये । यह उपदेश जैन परम्परा से भिन्न नहीं है । 'इसि भासियं' ३ में आंगिरस नामक प्रत्येकबुद्ध ऋषि का उल्लेख है । वे भगवान् अरिष्टनेमि के शासनकाल में हुए थे । इस आधार से बहुत सम्भव है कि आंगिरस या तो श्री अरिष्टनेमि के शिष्य अथवा उनके विचारों से प्रभावित कोई ऋषि रहे हों । जैनागमों में श्रीकृष्ण के यथार्थरूप का वर्णन मिलता है । श्रीकृष्ण अरिष्टनेमि के विचारों से तथा उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे । श्री अरिष्टनेमि के विवाह के लिए श्रीकृष्ण ने प्रयत्न किया था । " मथुरा के आसपास फले-फूले यदुवंश पर आपत्ति आने की सम्भावना पर समस्त यादवंगण श्रीकृष्ण के साथ मथुरा - शौरीपुर आदि छोड़कर जूनागढ़ के पास समुद्रतट पर द्वारिका नगरी का निर्माण करके वहीं बस जाते हैं । अरिष्टनेमि का बाल्यकाल और यौवन द्वारिका में व्यतीत हुआ । श्रीकृष्ण की प्रेरणा से राजीमती के साथ अरिष्टनेमि का विवाह निश्चित हुआ था । बड़ी धूमधाम से बरात लेकर वे जूनागढ़ के राजमहलों के निकट पहुँचे, तभी उनकी दृष्टि बाड़े में बन्द पशुओं पर पड़ी। उन्होंने सारथि को रथ रोककर पूछा कि “ये पशु इस तरह क्यों रोके गए हैं ?" सारथि से यह जानकर श्री अरिष्टनेमि के करुणाशील हृदय को अत्यन्त दुःख हुआ कि १ ज्ञाताधर्मकथा, ५, ६ ३ इसि भासिय ५. वही, अ० २२ २ छान्दोग्य उपनिषद् ३, १७, ६ ४ उत्तराध्ययन अ० २२, ६-८
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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