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७० : जैन तत्त्वकलिका
वर्तमानकाल में पंचमहाविदेहक्षेत्र में विहरमान बीस तीथंकर
निम्नलिखित बीस तीर्थंकर वर्तमानकाल में महाविदेहक्षेत्र में विचरण कर रहे हैं, जिन्हें बीस विहरमान तीर्थंकर कहते हैं- ..
(१) श्री सीमंधर स्वामी (११) श्री वज्रधरस्वमी (२), युगमन्धरस्वामी (१२) ,, चन्द्राननस्वामी (३), बाहुस्वामी
(१३) ,, चन्द्रबाहस्वामी (४) ,, सुबाहुस्वामी
(१४) , ईश्वरस्वामी (५), सुजातस्वामी
(१५) ,, भुजंगस्वामी (६) ,, स्वयम्प्रभस्वामी (१६) ,, नेमप्रभस्वामी (७) ,, ऋषभाननस्वामी (१७) ,, वीरसेनस्वामी (८) ,, अनन्तवीर्यस्वामी
(१८) ,, महाभद्रस्वामी (९) ,, सुरप्रभस्वामी
(१६) ,, देवसेनस्वामी (१०),, विशालधरस्वामी (२०), अजितवीर्यस्वामी
इन बीसों विहरमान तीर्थंकर का जन्म जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हुए सत्रहवें तीर्थंकर श्री कुन्थुनाथजी के निर्वाण के पश्चात् एक ही समय में हुआ था। बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के निर्वाण के बाद सबने एक ही समय में दीक्षा ग्रहण की। ये बीसों तीर्थंकर एक मास तक छद्मस्थ-अवस्था . में रहकर एक ही समय में केवलज्ञानी हए और ये बीसों ही तीर्थंकर भविष्यकाल की चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री उदयनाथजी के निर्वाण के पश्चात् एक साथ मोक्ष पधारेंगे।
तीर्थकर परम्परा शाश्वत ये बोसों तीर्थंकर जिस समय सोक्ष पक्षारेंगे, उसी समय महाविदेह क्षेत्र के दूसरे विजय में जो-जो तीर्थंकर उत्पन्न हुए होंगे, वे दीक्षा ग्रहण करके तीर्थंकर पद प्राप्त करेंगे । ऐसी परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है और आगे अनन्तकाल तक चलती रहेगी। अर्थात्-कम से कम बोस तीर्थंकर तो अवश्य होंगे हो-इनसे कम कभी न होंगे और अधिक से अधिक १७० तीर्थंकरों से अधिक कभी नहीं होंगे। इस प्रकार विभिन्न कर्मभूमिक क्षेत्रों में अनन्त तीर्थंकर भूतकाल में हो गये हैं, बीस वर्तमानकाल में विद्यमान (विहरमान) हैं; और अनन्त तीर्थंकर भविष्य में होंगे।
ये सभी तीर्थंकर, तीर्थंकर के पूर्वोक्त स्वरूप रो युक्त हुए हैं, हैं और होंगे। इन सबका शरीर चन्द्रमा से भी अधिक निर्मल, शान्त, एवं सौम्य;