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६८ : जैन तत्वकलिका
जम्बूद्वीपीय भरतक्षेत्र के भावी तीर्थंकरों का परिचय
(१) श्रोणिक राजा का जीव प्रथम स्वर्ग से आकर प्रथम तीर्थंकर 'श्री पद्मनाभ' के रूप में जन्म लेगा।
(२) श्री महावीर स्वामी के चाचा श्री सुपार्श्व का जीव देवलोक से आकर द्वितीय तीर्थंकर 'श्री सुरदेव' के रूप में जन्म लेगा।
(३) कोणिक राजा के पुत्र (पाटलीपुरपति) उदायी राजा का जीव देवलोक से आकर 'श्री सुपा' नामक तृतीय तीर्थकर रहेगा।
(४) पोट्टिल अनगार का जीव तोसरे देवलोक से आकर 'श्री स्वयम्प्रभ' नामक चतुर्थ तीर्थकर होगा।
(५) दृढ़युद्ध श्रावक का जीव पाँचवें देवलोक से आकर 'श्री सर्वानुभूति' नाम का पाँचवाँ तीर्थंकर होगा।
(६) कार्तिक श्रीष्ठो' का जीव, प्रथम देवलोक से आकर श्री देवभूति' नामक छठा तीर्थंकर होगा।
(७) शंख श्रावक का जीव देवलोक से आकर सप्तम तीर्थंकर 'श्री उदयनाथ के रूप में जन्म लेगा।
(८) आनन्द श्रावक का जीव देवलोक से आकर 'श्री पेढाल' नाम . का आठवाँ तीर्थंकर होगा।
(e) सुनन्द श्रावक का जीव देवलोक से आकर 'श्री पोटिल्ल' नामक नौवां तीर्थंकर होगा।
(१०) पोक्खली श्रावक के धर्मभाई शतक श्रावक का जीव देवलोक से आकर दसवाँ तीर्थंकर 'श्री शतक'५ होगा।
(११) श्रीकृष्ण की माता देवकी रानी का जोव नरक से आकर 'श्री मुनिव्रत' नामक ग्यारहवाँ तीर्थंकर होगा।
१ यह कार्तिक श्रेष्ठी, जो प्रथम देवलोक का इन्द्र बना है, वह नहीं है, कोई
और ही है। क्योंकि प्रथम देवलोक के इन्द्र की आयु दो सागरोपम है और इसका अन्तर थोड़ा है।
-० २ भगवतीसूत्र में वर्णित शंख श्रावक यह नहीं है, यह कोई और ही शंख श्रावक
है। ३ उपासकदशांग में वर्णित आनन्द श्रावक से यह भिन्न है। यह सम्यग्दृष्टि,
माण्डलिक राजा, चक्रवर्ती, साधु, केवलज्ञानी और तीर्थंकर इन ६ पदवियों के
धारक होंगे। ४-५ ये दोनों भी पूर्वोक्त छह पदवियों के धारक होंगे।
-सं०