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अरिहन्तदेव स्वरूप : ६७ इनके शरीर का वर्ण पन्ने का-सा हरा और लक्षण सर्प था । देहमान है हाथ का और आयुष्य १०० वर्ष का था। ३० वर्ष तक गृहवास में और ७० वर्ष तक मुनि पर्याय में रहकर अन्त में ३३ श्रमणों के साथ मुक्ति प्राप्त की। (२४) श्री महावीरस्वामी
भगवान् पार्श्वनाथ से २५० वर्ष के पश्चात् क्षत्रियकुण्ड नगर के सिद्धार्थ राजा की रानी त्रिशलादेवी से चौबीसवें तीर्थंकर श्री वद्ध मान (महावीर) का जन्म हुआ। भयंकर उपसर्गों और परोषहों को सहने में महान् वीर होने के कारण इनका नाम महावीर पड़ गया। जन्मनाम वद्ध मान था । माता के गर्भ में आने के बाद इनके घर में धन-धान्य, स्वर्ण-रजत आदि को दिनोंदिन वृद्धि होने लगी। इस कारण आपके मातापिता ने आपका नाम 'वर्तमान' रखा। __आपके शरीर का वर्ण स्वर्ण सदृश पीला था; सिंह का लक्षण था। देह की ऊँचाई सात हाथ की और आयु ७२ वर्ष को थी। तीस वर्ष गृहस्थावस्था में रहे और ४२ वर्ष तक संयम-पालन किया। जब चौथे आरे के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष थे, तभी आप अकेले हो पावापूरो में निर्वाण को प्राप्त हुए।
जम्बूद्वीपीय भरतक्षेत्र को भूतकालीन चौबीसो जम्बूद्वीपान्तर्गत भरतक्षेत्र के भूतकाल में जो २४ तीर्थकर हुए हैं, उनकी नामावली इस प्रकार है
१. श्री केवलज्ञानीजी . १३. श्री सुमतिजी २. ,, निर्वाणीजी
१४. ,, शिवगतिजी ३. ,, सागरजी
१५. ,, अस्तांगजी ४. ,, महायशजी
१६. , नमोश्वरजी ५ , विमलजी
१७. ,, अनिलजी ,, सर्वानुभूतिजी १८. ,, यशोधरजी ,, श्रीधरजी
१६. , कृतार्थजी
२०. , जिनेश्वरजी ,, दामोदरजी
, शुद्धमतिजी १०. , सुतेजाजी
२२. ,, शिवंकरजी ११. , स्वामीनाथजी २३. , स्यन्दननाथजी १२ , मुनिसुव्रतजी २४. , सम्प्रतिजी
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८. ,, दत्तजी
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