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६४ : जैन तत्त्व कलिका
राजा की सुव्रता रानी से पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथजी का जन्म हुआ। दुर्गति में पड़ते हए प्राणियों को धारण करने वाले होने से तथा जब आप माता के गर्भ में थे, तब माता की रुचि दान आदि धर्मकार्यों में विशेष हो गई थी। इस कारण से भगवान का नाम 'धर्मनाथ' रखा गया।
इनके शरीर का रंग सोने का सा पीला था, लक्षण वज्र का था। देहमान ४५ धनुष का तथा आयु १० लाख वर्ष की थी। जिसमें से साढ़े सात लाख वर्ष तक गृहस्थ जीवन में और ढाई लाख वर्ष संयमी जीवन में व्यतीत किये । अन्त में, आठ सौ (८००) साधुओं के साथ सिद्धि प्राप्त की। (१६) श्री शान्तिनाथजी
श्री धर्मनाथजी के बाद पौन पल्य कम तीन सागरोपम व्यतीत हो जाने पर हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन को अचिरा रानी से सोलहवें तीर्थकर श्री शान्तिनाथजी का जन्म हुआ। शान्ति के योग से अथवा शान्ति करने वाले होने से शान्तिनाथ नाम रखा गया था अथवा भगवान् जब गर्भवास में थे, तब देश में जो महामारी का अशिव (रोग) था, उसकी शान्ति हो गई थी। अतएव आपका नाम 'शान्तिनाथ' रखा गया।
आपके शरीर का वर्ण पीला स्वर्ण-सा था, लक्षण मृग का था। देहमान ४० धनुष और आयुष्य १ लाख वर्ष का था। जिसमें से ७५ हजार वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे और शेष २५ हजार वर्ष तक संयम पालन किया। अन्त में ६०० मुनियों के साथ मुक्ति प्राप्त की। (१७) श्री कुन्थुनाथजी
तत्पश्चात् आधा पल्योपम व्यतीत होने पर हस्तिनापुर के सूर राजा की श्री रानी से सत्रहवें तीर्थंकर श्री कुन्थुनाथजी का जन्म हुआ। 'कु' अर्थात पथ्वी पर स्थित हो गए, इससे भगवान् का नाम 'कुन्थु' पड़ा । अथवा भगवान् जब गर्भ में थे, तब उनकी माता ने रत्नमय कुन्थुओं की राशि को देखा था, इस कारण भगवान् का नाम 'कुन्थुनाथ' रखा गया।
इनके शरीर का वर्ण सोने-सा पीला था। इनका लक्षण अज था। इनके शरीर की ऊँचाई ३५ धनुष की और आयु ६५ हजार वर्ष की थी। सवा इकहत्तर हजार वर्ष तक गृहस्थवास में और पौने चौबीस हजार वर्ष तक मुनिधर्म में रहे । अन्त में, एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष पधारे। (१८) श्री अरनाथजी
श्री कुन्थुनाथजी के एक करोड़ एक हजार वर्ष कम पाव पल्योपम के पश्चात् हस्तिनापुर नगर के सुदर्शन राजा की देवी रानी से अठारहवें