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________________ अरिहन्तदेव स्वरूप : ६३ नाम वासुपूज्य हुआ । अथवा 'वासव' नामक इन्द्रों द्वारा पूजित होने से आपका नाम 'वासुपूज्य' पड़ा । आपके शरीर का वर्ण माणिक्य जैसा लाल था । आपका लक्षण महिष (भैंसे ) का था। आपके शरीर की ऊँचाई ७० धनुष और आयु ७२ लाख वर्ष की थी। जिसमें से अठारह लाख वर्ष कुमार अवस्था में रहे, विवाह नहीं किया और ५४ लाख वर्ष तक मुनिजीवन में रहे । अन्त में, छह सौ (६००) मुनिवरों के साथ आपने मुक्ति प्राप्त की । (१३) श्री विमलनाथजी तत्पश्चात् ३० सागरोपम व्यतीत होने पर कम्पिलपुर नगर में कृतवर्म राजा की श्यामादेवी रानी से तेरहवें तीर्थंकर श्री विमलनाथजी का जन्म हुआ । आठ कर्मरूपी मल दूर हो गया था अथवा निर्मलज्ञानादि के योग से 'विमल' नाम हुआ । अथवा भगवान् जब गर्भ में थे, तब उनकी माता की तथा देह निर्मल हो गई थी, इस कारण से भगवान् का नामकरण किया - 'विमलनाथ ।' गया आपके शरीर का वर्ण स्वर्ण सदृश पीला और वाराह (शूकर ) IT लक्षण था । शरीर की ऊँचाई ६० धनुष की तथा आयु ६० लाख वर्ष की थी । जिसमें से ४५ लाख वर्ष तक गृहवास में रहे और १५ लाख वर्ष तक संयम पाला । अन्त में, छह हजार (६०००) मुनियों के साथ आप सर्वकर्ममुक्त होकर मोक्ष में जा विराजे । (१४) श्री अनन्तनाथजी उसके बाद नौ सागरोपम बीत जाने पर अयोध्यानगरी में सिंहसेन राजा की सुयशा रानी से चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथजी का जन्म हुआ । आपके गुणों का कोई अन्त नहीं था, इस कारण से अथवा अनन्त कर्मों के अंश को जीतने से अनन्तज्ञान उत्पन्न होने के कारण 'अनन्तनाथ' नाम पड़ा । आपके शरीर का वर्ण सोने-सा पीला था, और लक्षण सिकरे पक्षी का था । शरीर की ऊँचाई ५० धनुष की और आयु ३० लाख वर्ष की थी, जिसमें से साढ़ े बाईस लाख वर्ष तक गृहवास में रहे, साढ़े सात लाख वर्ष तक संयम पाला और अन्त में सात हजार ( ७०००) मुनिवरों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए । (१५) श्री धर्मनाथजी तत्पश्चात् चार सागरोपम व्यतीत होने पर रत्नपुरी नगरी में, भानु
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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