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अरिहन्तदेव स्वरूप : ६१
प्रतिष्ठ राजा की पृथ्वीदेवी रानी की कुक्षि से सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी का जन्म हुआ । इनके शरीर का वर्ण स्वर्णसम पीला और लक्षण स्वस्तिक का था। दोनों पार्श्व (बाजू) शोभनीय होने से इनका नाम 'सुपार्श्व ' हुआ; अथवा भगवान् जब गर्भ में थे तब माता के दोनों पार्श्व (बाजू) शोभनीय होगए थे । अतएव भगवान् का नाम सुपार्श्व रखा गया ।
आपके शरीर की ऊँचाई २०० धनुष की और आयु २० लाख पूर्व की थी । १६ लाख पूर्व तक गृहस्थजीवन में और १ लाख पूर्व संयमी जीवन में रहे । अन्त में पाँच सौ (५००) मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए । ( 5 ) श्री चन्द्रप्रभजी
श्री सुपार्श्वनाथजी के ६०० करोड़ सागर के पश्चात् चन्द्रपुरी नगरी के महासेन राजा की लक्ष्मणादेवी रानी से आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभजी का जन्म हुआ । चन्द्रमा के समान सौम्य प्रभा - लेश्या होने के कारण तथा भगवान् जब गर्भ में आए थे, तब माता को चन्द्रपान करने का दोहद उत्पन्न हुआ था, इस कारण प्रभु का नाम चन्द्रप्रभ रखा गया । इनके शरीर का वर्ण हीरे के समान श्वेत और लक्षण चन्द्रमा का था ।
आपके शरीर की ऊँचाई १५० धनुष की और आयु १० लाख पूर्व की थी । आप नौ लाख पूर्व तक गृहवास में और एक लाख पूर्व मुनिजीवन में रहे । अन्त में, एक हजार साधुओं के साथ मुक्त हुए ।
(१) श्री सुविधिनाथजी
श्री चन्द्रप्रभजी से ६० करोड़ सागरोपम के पश्चात् काकन्दी नगरी के सुग्रीव राजा की रामादेवी रानी से नौवें तीर्थंकर श्रीसुविधिनाथजी का जन्म हुआ । सुन्दर विधि-विधान वाले होने से अथवा भगवान् के गर्भ में आने पर माता सुन्दर विधि-विधान करने वाली हो गई थी, इसलिए 'श्री सुविधिनाथ' नाम रखा गया ।
इनका शरीर वर्ण हीरे के समान श्वेत और लक्षण मत्स्य का था । देहमान १०० धनुष का एवं आयुष्य दो लाख पूर्व का था, जिसमें से १ लाख पूर्व गृहस्थवास में और १ लाख पूर्व मुनिजीवन में बिताए । अन्त में, एक हजार (१०००) साधुओं सहित मुक्त हुए। आपका दूसरा नाम 'पुष्पदन्त' भी है ।
(१०) श्री शीतलनाथजी
तदनन्तर नौ करोड़ सागरोपम के बाद भद्दलपुर नगर के राजा दृढ़रथ