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६० : जैन तत्त्वकलिका
कुक्षि से चौथे तीर्थंकर श्री अभिनन्दनजी का जन्म हआ। देवेन्द्र आदि के द्वारा अभिनन्दन (स्तुति-स्तव) किया गया, इस कारण आपका 'अभिनन्दन' नाम पड़ा अथवा जब से भगवान् गर्भ में आए थे, तभी से शक्रेन्द्र द्वारा बार-बार अभिनन्दन किये (बधाई दिये या स्तुति किये) जाने के कारण भगवान् का नाम 'अभिनन्दन' दिया गया। इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण सदृश पीला तथा लक्षण कपि का था। शरीर की ऊँचाई ३५० धनुष की तथा आयु ५० लाख पूर्व की थी। ४६ लाख पूर्व तक गृहवास में रहे, एक लाख पूर्व तक चारित्र पाला और अन्त में एक हजार (१०००) साधुओं के साथ मुक्ति प्राप्त की। (५) श्री सुमतिनाथजी
तदनन्तर ह लाख करोड़ सागरोपम बीत जाने पर कंचनपूर नगर में मेघरथ राजा की सुमंगला रानी की कुक्षि से पाँचवें तीर्थंकर श्री सुमतिनाथजी का जन्म हुआ। सून्दर मति होने से इनका नाम 'सुमति' हुआ। एक घटना यह भी है कि भगवान् जिस समय माता के गर्भ में आए, तभी से माता की मति सुव्यवस्थित सुनिश्चित हो गई थी, अतएव भगवान का नाम 'समतिनाथ' रखा गया। इसके शरीर का वर्ण भी स्वर्णसम पीत और लक्षण क्रौंच पक्षी का था । इनका देहमान ३०० धनुष का तथा आयुष्य ४० लाख पूर्व का था। ३६ लाख पूर्व तक गृहस्थवास में रहे, एक लाख पूर्व तक संयम का पालन करके अन्त में, एक हजार (१०००) मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए। (६) श्री पद्मप्रभजी
__ तत्पश्चात् ६० हज़ार करोड़ सागरोपम के पश्चात् कौशाम्बी नगरी में श्रीधर राजा की सूसीमा रानी से छठे तीर्थंकर श्री पद्मप्रभजी का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण माणिक्य के समान लाल और लक्षण पद्म (कमल) का था। विषयवासनारूपी पंक से निलिप्त पद्म के समान प्रभा होने के कारण 'पद्मप्रभ' नाम हुआ। अन्य कारण यह भी था-माता को पद्मशय्या पर शयन करने का दोहद उत्पन्न हुआ था, वह देवता द्वारा पूर्ण किया था, तथा शरीर का वर्ण पद्म कमल सदृश था, इस कारण भी इनका नाम 'पद्मप्रभ' रखा गया।
___ इसके शरीर की ऊंचाई २५० धनुष की और आयु ३० लाख पूर्व की थी। २६ लाख पूर्व तक गृहस्थवास में और १ लाख पूर्व तक मुनि जीवन में रहे, अन्त में तीन सौ आठ (३०८) मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया। (७) श्री सुपार्श्वनाथजी
तदनन्तर नौ हजार करोड़ सागरोपम के पश्चात् वाराणासी नगरी में