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________________ अरिहन्तदेव स्वरूप : ५६ में रहे, तथा एक लाख पूर्व तक श्रमणधर्म का पालन करके तीसरे आरे के जब ३ वर्ष, ८ मास और १ पक्ष (पन्द्रह दिन) शेष रहे थे, तब दस हजार (१०,०००) साधुओं के साथ मोक्ष पधारे । (२) श्री अजितनाथजी श्री ऋषभदेवजी से ५० लाख करोड सागर के बाद, अयोध्यानगरी के राजा जितशत्रु की रानी विजयादेवी से दूसरे तीर्थंकर अजितनाथजी हुए। २२ परीषह, ४ कषाय, ८ मद और ४ प्रकार के उपसर्ग, ये सब भगवान् को जीत न सके, इसलिए भगवान् का गुणनिष्पन्न शुभ नाम अजितनाथजी हुआ। ___ एक घटना यह भी है कि भगवान् जब माता के गर्भ में थे, उस समय मनोविनोद के लिए राजा और रानी दोनों चौपड़ खेल रहे थे, उस समय राजा रानी को जीत न सका, इसलिए माता-पिता ने भगवान् का नाम 'अजितनाथ' रखा। - इनके शरीर का वर्ण स्वर्णसदृश पीला और लक्षण हाथी का था। देह की ऊँचाई ४५० धनुष की और आयु ७२ लाख पूर्व की थी। ७१ लाख पूर्व तक गृहस्थावस्था में रहे। एक लाख पूर्व तक संयम पालकर अन्त में एक हजार (१०००) साधुओं के साथ मोक्ष पधारे । (३) श्री सम्भवनाथजी श्री अजितनाथजी से ३० करोड़ सागरोपम पश्चात् श्रावस्ती नगरी में जितारि राजा की सेनादेवी रानी से तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथजी का जन्म हुआ। जिसकी स्तुति करने से 'शं' अर्थात्-सुख तथा कल्याण प्राप्त होता है, उसे 'शंभव' कहते हैं ! अन्य घटना यह भी है कि जिस समय भगवान् माता के गर्भ में आए, उस समय पृथ्वी पर धान्यों की अत्यन्त उत्पत्ति (सम्भव) हुई, इसलिए भगवान् का नाम 'सम्भवनाथ' हुआ। इनके शरीर का भी वर्ण स्वर्णसम पीला और लक्षण अश्व का था। शरीर की ऊँचाई ४०० धनुष की तथा आयु ६० लाख पूर्व की थी। ५६ लाख पूर्व तक गृहवास में रहे, एक लाख पूर्व तक संयम-पालन किया और अन्त में एक हजार (१०००) साधुओं के साथ मोक्ष पधारे। (४) श्री अभिनन्दनजी श्री सम्भवनाथजी के मोक्षगमन के उपरान्त दस लाख करोड़ सागरोपम व्यतीत हो जाने पर विनीतानगरी में संवर राजा की सिद्धार्था रानी की
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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