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५० : जैन तत्त्वकलिका में, उपयुक्त तीन ज्ञान सहित तीर्थंकर कर्मभूमि' में प्रायः पुरुष रूप में जन्म
लेते हैं। जिस प्रकार वर्तमान में राज्य नहीं मिलने पर भी भविष्य में राज्य मिलने वाला है, इसलिए राजकुमार को राजा कहा जाता है, उसी प्रकार तीर्थंकर भी बाल्यावस्था में केवलज्ञानी न होने से उनमें वास्तविक तीर्थकरत्व न होने पर भी उसी जीवन में भविष्य में तीर्थंकर पद प्राप्त करने वाले हैं, इसलिए वे जन्म से ही 'तीर्थंकर' कहे जाते हैं।
तीर्थंकरों को अपने जीवन में असाधारण एवं उच्च अध्यात्म साधनामय पुरुषार्थ करना होता है, उसके लिए उन्हें असाधारण शूरवीरता, वत्सलता और पराक्रम की आवश्यकता होती है, साथ ही जनता को विशेष प्रभावित एवं आकर्षित करने हेतु भी उच्चकुलगत वंश में जन्म लेना होता है, इसलिए उनका प्रबल पुण्यबल उन्हें उत्तम कुल में जन्म प्राप्त कराता है।
तीर्थंकरों के जन्म के समय सारे विश्व में प्रकाश की किरणें व्याप्त हो जाती हैं, और प्रकृति की प्रसन्नता बढ़ जाती है। जहाँ सतत दारुण दुःख का अनुभव होता है, ऐसे नरकस्थानों में भी उस समय क्षणभर के लिए सुखानुभूति की लहर सी दौड़ जाती है।
तीर्थंकरों के जन्म के समय छप्पनदिक कुमारिका आदि देवियाँ आकर १ विश्व में मानव निवास वाली भूमि दो प्रकार की हैं—एक सांस्कृतिक जीवन
वाली, और दूसरी सहज जीवन वाली । इनमें सांस्कृतिक जीवन वाली भूमि को कर्मभूमि कहते हैं, क्योंकि उसमें कृषि, व्यापार, न्याय, युद्ध, वाणिज्य, उद्योग, कला तथा तप, संयम आदि कर्मों की प्रधानता होती है। सहज जीवन वाली भूमि में कृषि आदि कर्म नहीं होते । वहाँ के मानव स्वाभाविक रूप से दस प्रकार के कल्पवृक्षों से प्राप्त होने वाले भोगोपभोग्य साधनों आदि पर जीवन निर्वाह करते हैं । इसलिए इस भूमि को अकर्मभूमि कहते हैं । इन दो प्रकार की भूमियों में से तीर्थकर का जन्म कर्मभूमि में ही होता है, क्योंकि तप, संयम,
साधुता, श्रमण धर्म आदि वहीं होते हैं। २ तीर्थंकर प्रायः पुरुषरूप में जन्म लेते हैं, फिर भी अनन्तकाल में कदाचित आश्चर्य
स्वरूप वे स्त्रीरूप में भी जन्म लेते हैं। इसमें मुख्य कारण तदनुकूल पूर्वबद्ध कर्म
है। वर्तमान चौबीसी में १९वे तीर्थंकर श्रीमल्लिनाथ स्त्रीरूप में उत्पन्न हुए थे। ३ छप्पन दिक्कुमारिकाएं इस प्रकार हैं-(१) आठ अधोलोक में रहने वाली,
(२) आठ ऊर्वलोक में रहने वाली, (३) आठ पूर्व रुचक पर रहने वाली, (४) आठ दक्षिण रुचक पर रहने वाली, (५) आठ पश्चिम रुचक पर रहने वाली, (६) आठ उत्तर रुचक पर रहने वाली और (७) आठ विदिशा रुचक पर रहने वाली, यों कुल मिलाकर ५६ दिशाकुमारिका देवियाँ हैं । विशेष वर्णन के लिए देखिए-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र