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________________ अरिहन्तदेव स्वरूप : ३७ सामायिक (समतायोग) में स्थित, भगवदुपदिष्ट धर्मोपदेशक,' जैन सिद्धान्त प्रचारक, धर्मदेव, धर्मगुरु कहलाते हैं। इस प्रकार के धर्मगुरुओं को भक्ति, बहमान और गणोत्कीत्त न करने से जीव तीर्थंकरगोत्रनामकर्म का उपार्जन कर लेता है। अथवा धर्माचार्यों (जो शास्त्रोक्त छत्तीस गुणों से युक्त हों) के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखने, उनका बहुमान और गुणोत्कीतन करने से भी जीव तीर्थकरत्व प्राप्त कर लेता है। (५) स्थविर-भक्ति-जो मुनि बीस वर्ष की दीक्षापर्याय वाले, साठ वर्ष या इससे अधिक आयु वाले एवं सूत्रकृतांग, स्थानांग आदि शास्त्रों के ज्ञाता हों, वे स्थविर कहलाते हैं। ऐसे दीक्षास्थविर, वयःस्थविर एवं श्रु तस्थविर प्राणिमात्र के हितैषी होने से धर्म से गिरते-स्खलित होते, शिथिल होते हुए व्यक्तियों को धर्म में स्थिर करते हैं। वे स्वयं श्रमणधर्म के मौलिक आचार-विचार में दृढ रहते हैं तथा दूसरे साधकों को भी दृढ़ करते हैं, उनकी साधना में आचार-शुद्धि में सहायक बनते हैं । संघ, गण, गच्छ आदि को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए देशकालानुसार समाचारी (आचार-संहिता) भी बनाते हैं। ऐसे स्थविर अल्पवयस्क हों तो भी वृद्धों के समान गम्भीर होते हैं। इस प्रकार के स्थविरों की भक्ति- बहुमान एवं गुणोत्कीतन द्वारा भी जीव तीर्थकरनामगोत्रकर्म का बन्ध कर लेता है। (६) बहश्र त-भक्ति-अनेक प्रकार के शास्त्रों के अध्येता, विद्वान् स्वसिद्धान्त-परसिद्धान्त (स्वसमय-परसमय) के पूर्ण वेत्ता, तत्त्वचिन्तक, स्वसिद्धान्तप्रतिपादन में कुशल, स्वमत-परमत के ज्ञाता, स्वमत में दृढ़, सर्वशास्त्रपारगामी, सर्वदर्शनों के अभ्यासी, प्रतिभासम्पन्न, गाम्भीर्य-धैर्य आदि गुणों से युक्त, हर्ष-शोक में समभावी, श्रुतविद्या से अलंकृत, वादी-मान-मर्दक, सर्वशंका-निवारक एवं श्रीसंघ में पूज्य श्रमण बहुश्रु त कहलाते हैं। ऐसे बहश्र त विद्वान् देशकाल विशेषज्ञ मुनिवरों की भक्ति, बहमान एवं गुणोत्कीतन करने तथा उनके गुणों को धारण करने से जीव तीर्थंकरत्व को प्राप्त करता है। (७) तपस्वी-भक्ति-अपनी आत्मशुद्धि एवं कर्म-निर्जरा के लिए १ महाव्रतधरा धीरा भक्ष्यमात्रोपजीविनः । सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरुवो मताः ॥ -योगशास्त्र, प्र० २, श्लो०८
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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