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________________ ८ जीवन : एक संग्राम बाह्य युद्ध का रेखाचित्र धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! जीवन एक संग्राम है । जिस प्रकार युद्ध क्षेत्र में दोनों ओर पक्ष-विपक्ष की सेना खड़ी रहती है । दोनों ओर की सेना के हाथों में शस्त्र-अस्त्र होते हैं । युद्ध शुरू होता है, तब दोनों ओर के सैनिकों को इच्छा से या अनिच्छा से लड़ना पड़ता है । अगर कोई सैनिक भागना चाहे तो भाग नहीं सकता । वहाँ सैनिकों की व्यूह रचना इस प्रकार की जाती है कि अगर कोई सैनिक कायर बनकर बीच में से भागना चाहे तो भाग ही नहीं सकता है । किसी विचारक ने कहा है 1 The life of the man is a field of battle. - मनुष्य का जीवन युद्ध का मैदान है । यह युद्ध संघर्ष मनुष्य के जीवन में निरन्तर प्रतिक्षण चलता रहता इस आन्तरिक जीवन-युद्ध में एक ओर काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, राग, द्व ेष, अहंकार, माया, तृष्णा आदि की सेना डटी रहती है, तो दूसरी ओर शील, क्षमा, निर्लोभता, सन्तोष, अनासक्ति, निर्मोह, विनय, नम्रता, समभाव, दया आदि की सेना डटी है । दोनों में परस्पर युद्ध चलता है । उत्तराध्ययन सूत्र (९ / ३४-३५) में इन्द्र के प्रश्न के उत्तर में नमिराजर्षि ने इसी आन्तरिक युद्ध की ओर संकेत किया है जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ||३४|| अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ ! अप्पाणमेव अप्पाणं, जइत्ता सुमेह ||३५||
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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