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________________ ७२ अमर दीप को बन्दन करने की भावना की, और ज्यों ही उसके लिए कदम उठाया, त्यों ही उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। यह ऐतिहासिक घटना बताती है, पाँचों महाव्रतों का पालन करते हुए तथा उत्कट तपःसाधना करते हुए भी जिस अभिमान के कारण ऐसे उच्च साधक का केवलज्ञान (सर्वज्ञत्व) रुका हुआ था, वह अभिमान दूर होते ही, उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। वे युगपत् समस्त द्रव्यों और उनकी सर्वपर्यायों के ज्ञाता (सर्वज्ञ) बन गए। विनयधर्म को अन्य उपलब्धियां विनयधर्म की सबसे बड़ी उपलब्धि सर्वज्ञता का तो मैंने अभी-अभी जिक्र किया था। अन्य उपलब्धियों के विषय में अर्हतर्षि पुष्पशालपुत्र का कहना है कि विनयधर्म के पालन से साधक ज्ञान, दर्शन और चारित्र के प्रति भी नम्रातिनम्र बनता है। इससे वह केवलज्ञान-केवलदर्शन को उपलब्ध कर लेता है। साथ ही अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, इन पाँच महाव्रतों का प्राणप्रण से पालन करने में जुट जाता है, क्योंकि विनय धर्म का साधक प्राणिमात्र के प्रति आत्मभाव, आत्मतुल्य भाव को लेकर चलता है, ऐसी स्थिति में वह किसी भी प्राणी के प्रति हिंसा, असत्य, चौर्य अब्रह्मचर्य या परिग्रह का आचरण कैसे कर सकता है ? यही कारण है कि ज्ञाताधर्म-कथा सूत्र एवं उत्तराध्ययन में भगवान् महावीर ने विनयधर्म के . अन्तर्गत पाँचों महाव्रतों को समाविष्ट कर दिया है। विनयधर्म के पालन से एक ओर तो साधक अहंकारादि कषायों का एवं मोह का क्षय कर देता है और दूसरी ओर सम्यक्चारित्र की आराधना से समस्त घाती कर्मों का क्षय कर देता है। अर्थात्-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चारों घाति कर्मों को नष्ट करके केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है। जैसा कि तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है "मोहक्षयाज्ज्ञान-दर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ।" (९/१) कृत्स्न-कर्मक्षयो मोक्षः ।" (९/२) मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण एवं अन्तरायकर्म के क्षय होने से साधक केवलज्ञान तथा बाद में समस्त कर्मों का क्षय होने से मोक्ष प्राप्त कर लेता है। __ विनयधर्म की और भी अनेक उपलब्धियाँ हैं, जो इसके पालन से प्राप्त होती है। इसीलिए अर्हतर्षि पुष्पशालपुत्र ने अहंकार-विजय के सन्दर्भ में विनयधर्म-पालन की प्रेरणा दी है।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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