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________________ श्रवण का प्रकाश; आचरण में.... २५ लक्षण है । धर्मश्रवण से श्रोतव्य-श्रोता का हृदय दुःखी को देखकर दया से द्रवित हो जाए, यह प्रथम लक्षण है । कवि कहता है दया बिन बावरिया हीरा-जनम गंवाए कि पत्थर से दिल को, क्यों ना फूल बनाए ? ॥ दया० ॥टेर ॥ कोमलता का भाव न मन में फिर क्या सुन्दरता से तन में जीवन, विष बरसाए ॥ दया० ॥१॥ दीन-दुःखी की सेवा कर ले पाप-कालिमा अपनी हर ले। तिहुं जग मंगल गाए ॥ दया० ॥२॥ श्रोतव्य को इससे पहचाना जा सकता है कि उसके दिल में दया है, मैत्री है, बन्धुत्व की भावना है। श्रोतव्य का द्वितीय लक्षण : सत्य जिसने धर्म श्रवण किया है, उसे पहचानने का दूसरा लक्षण सत्यभाषिता है। मिथ्याभाषी आत्मा सच्चा श्रोता नहीं हो सकता है। धर्म श्रवण करने के बाद उसके जीवन में सत्य होना ही चाहिये । इसी बात को अर्हतर्षि नारद कहते हैंमुसावादं तिविहं तिविहेणं णेव बूया ण भासए । बितियं सोयव्व - लक्खणं ॥ श्रोतव्य का दूसरा लक्षण यह है कि वह त्रिकरण-त्रियोग से मिथ्याभाषण स्वयं न करे, अन्य से मिथ्या न बुलवाये तथा न ही मिथ्याभाषण करने वाले का अनुमो दन करे ; मन-वचन-काया से । वास्तव में धर्मश्रवणकर्ता के लिये असत्यभाषण एक कलंक है। मिथ्याभाषण से व्यक्ति अविश्वसनीय बनता है। . श्रोतव्य का ततीय लक्षण : अदत्तादान-विरमण अदत्तादान, अर्थात् चोरी से विरत होना श्रोतव्य का तीसरा लक्षण अर्हतर्षि ने बताया। उनके शब्दों में देखियेअदत्तादाणं तिविहं तिविहेणं णेव कुज्जा ण कारवे । ततियं सोयव्व -- लक्खणं ॥ श्रोतव्य का तीसरा लक्षण है कि वह तीन करण, तीन योग से अदत्तादान न करे, न करावे और न ही इसका अनुमोदन करे । आत्मा एवं आत्मगुणों के सिवाय समस्त वस्तुएँ परभाव हैं, विभाव हैं; स्वभाव नहीं।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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