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________________ १४ अमर दीप परिवर्तन तलवार, बन्दूक या भय प्रदर्शन नहीं कर सकते, उनका जीवन महात्माओं या महापुरुषों के एक ही वचन या प्रवचन सुनने से बदल गया, बदल जाता है । बड़े-बड़े संगीन अपराध करने वाले हत्यारे, चोर, डाकू, वेश्या आदि पापात्मा व्यक्तियों का जीवन एक ही बार के धर्मवचन श्रवण से बदल गया । भारतीय धर्मों का इतिहास साक्षी है कि पापी से पापी व्यक्तियों का जीवन एक झटके में, एक प्रवचन सुनते ही नया अहिंसक मोड़ ले लेता था । ११४१ व्यक्तियों की हत्या करने वाला अर्जुनमाली भगवान् महावीर का एक प्रवचन सुनते ही एकदम बदल गया । वह पापात्मा से धर्मात्मा बन गया। इतना ही नहीं, साधु जीवन अंगीकार करके वह कष्टसहिष्णु, क्षमामूर्ति और संयम का कठोर आचरण करने वाला बन गया । क्रुद्ध चण्डकौशिक सर्प को भगवान् महावीर ने इतना ही कहा थाचंडकोसिया ! बुज्झह बुज्झह बुज्झह !! हे चण्डकौशिक ! अब भी समझ, अब भी समझ ! अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है, तुझे पंचेन्द्रिय का चोला मिला है। तू हिंसक सांप की योनि में भी अहिंसक श्रावकत्व धारण कर सकता है । और भगवान् का धर्मवचन सुनकर क्रूर चण्डकौशिक शान्त चण्डकौशिक बन गया, पापी से धर्मी हो गया । ू और मेघकुमार मुनि भी दीक्षा ग्रहण करने की प्रथम रात्रि में साधुओं के पैरों की ठोकर लग जाने से झुंझलाकर मुनि जीवन को छोड़ने का विचार कर चुका था, मगर श्रमण भगवान् महावीर के श्रीमुख से युक्तिपूर्वक कहा हुआ वचन श्रवण कर पुनः संयम पथ में स्थिर हो गया । गणधर गौतम, जो एक दिन पाण्डित्य के अभिमान में छके हुए थे, भगवान् महावीर की वाणी सुनते ही अपना सर्वस्व अहं छोड़कर उनके शिष्य बन गए । वचन श्रवण का प्रभाव कितना गहरा होता है, इसे समझाते हुए कवि कहता है वाणी सुनाई ऐसी, वीर भगवान ने, नया ही प्रकाश पाया, भूले इन्सान ने ॥ टेक ॥ गौतम ने वाणी सुनी, छोड़ा अभिमान था, दृष्टिराग टूटा, नष्ट हुआ अज्ञान था । सीधी राह पाई उस वेद-विद्वान् ने । वाणी० ॥ १ ॥ वाणी से बहा जब अमृत का निर्झर, हुआ उपशान्त चण्डकौशिक विषधर । स्वागत किया था पंचम स्वर्ग के विमान ने ॥ वाणी० ॥ २ ॥
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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