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________________ श्रवण : निर्वाण पथ का पहला दीपक जीवन अपना चमका ले, सुण-सुण के लाभ उठा ले । शास्त्रां च आए जेहड़े बोल । हीरा अनमोल । इक इक मन सुधरे, सुधरे वाणी, ऊँचा उठ जाए प्राणी । सुन-सुन के अक्खां लेवे खोल ॥ टेक ॥ उत्तों है दुनिया सोहणी, भरिया है गंद गब्भे । क्रोध क्लेश जित्थे जाओ, ओत्थे ही लब्भे ॥ शास्त्रां दे बोल मिट्ठे, पी के जिन्होंने दिट्ठे । feat ओन्हांनं समता सारी, मिट जांदी ममता ॥ मित्था धर्मदी खुले पोल ॥ १ ॥ मुक जांदी तृष्णा भूखी आत्मा ये रजदी जावे । विषय विकारां बिचों, वो कौड़ी-कौड़ी आवे || शान्ति अपार मिलवी, अमृतदी धार मिलदी । मुकदा है आणा-जाणा, पांदा आनन्द खजाना ॥ जिस ए कुंजी होवे कोल ॥ २ ॥ सुननेतों ज्ञान मिलदा, डूंगा विज्ञान मिलदा । पापांनूं दूर करण लई त्याग पचक्खान मिलदा ॥ जप-तपदी ज्योति जग्गे, चानण हो अग्गे -अगे । कर्मादेि कटदे बन्धन, दुक्खांदे मिटदे कारण ॥ मुक्ति मिल जांदी है अमोल ॥ ३ ॥ १३ कवि ने नपी-तुली भाषा में धर्मश्रवण के सुपरिणामों को अभिव्यक्त कर दिया है । धर्मश्रवण : जीवन को देखने का दर्पण वास्तव में धर्मश्रवण ही श्रोतव्य का श्रवण अथवा सत्यश्रवण है । सत्य का अर्थ है - ' सद्द्भ्यो हितम् सत्यम्'' जो प्राणियों के लिए हितकर - श्रेयस्कर हो । अतः सत्यश्रवण या धर्म-श्रवण जीवन को देखने का एक दर्पण है । जैसे - आइने में आप अपना चेहरा भलीभांति देख लेते हैं, वैसे ही धर्मश्रवण रूपी आइने में आप अपनी आत्मा का प्रतिबिम्ब देख सकते हैं कि आपके जीवन पर कहाँ कालिमा है, कहाँ लालिमा है ? कहाँ धर्म और पुण्य का कमल सरोवर है और कहाँ पाप का गड्ढा है ? कहाँ अच्छाई है, और कहाँ बुराई है ? धर्मश्रवण का अद्भुत प्रभाव जो कार्य राजदण्ड नहीं कर सकता; जिन अपराधियों का जीवन
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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