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________________ ऋषिभाषित सूत्र : एक अमर दीपक है ५ जीवन और जगत् के रहस्यवेत्ता इन ऋषियों ने मानव की वृत्तियों का सूक्ष्म विश्लेषण किया है। वे साधक जीवन के बहुरुपियापन पर सीधा प्रहार करते हैं । वे प्रत्येक साधक को निहित स्वार्थियों या अज्ञपुरुषों द्वारा की हुई तीखी आलोचना को या निन्दा - प्रशंसा के प्रवाह को सुनकर अपने स्वीकृत अध्यात्म-पथ से विचलित न होने के लिए प्रेरित करते हैं। प्रत्येक साधक को आलोचना-प्रत्यालोचना के द्वन्द्व में भी स्थिरप्रज्ञ रहने का परामर्श देते हैं। ऋषिभाषित एक शुद्ध आध्यात्मिक शास्त्र है। इसमें आत्म-दर्शन के हर पहलू का प्रतिपादन है। यह आत्मा की विकृतियों या विभावपरिणतियों को दूर करके शुद्ध आत्म-स्वरूप में स्थित रहने की प्रेरणा देता है। कहीं यह कषाय-विजय की प्रेरणा देता है। कहीं आध्यात्मिक युद्ध में प्रतिक्षण सावधानीपूर्वक विकारों से जूझकर आत्मा को विजयी बनाने की प्रेरणा करता है । कहीं समभाव की साधना का पाठ पढ़ाता है। कहीं आध्यात्मिक कृषि का सांगोपांग निरूपण करता है। कहीं इन्द्रियों और मन पर विजय पाने के लिए सुन्दर मार्ग-दर्शन करता है । कहीं सुख, शान्ति और समाधि के वास्तविक राजमार्ग का प्रतिपादन करता है। जैनधर्म सदा से अनेकान्तवादी और गुणपूजक रहा है। वह वेश, पंथ या परम्परा का पिछलग्गू नहीं, गुणों का ग्राहक रहा है। जैसे समझदार व्यक्ति गाय के रंग-रूप या कद को नहीं देखता, किन्तु वह अमृततुल्य दूध को महत्त्व देता है, जिसे पीने से शरीर में बल, वीर्य, स्फूति और कान्ति की वृद्धि होती है। इसी प्रकार जैनधर्म किसी व्यक्ति को महत्व न देकर उस उज्ज्वल चरित्र व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत सत्य के प्रकाश तथा अध्यात्म के अनुभवों को चन्द्र-सूर्य के सार्वजनीन प्रकाश की तरह महत्त्व देता है । इसलिए कहना होगा कि इस सूत्र में उज्ज्वल चरित्र ऋषियों के द्वारा कथित अध्यात्म का अनुभव एवं सत्य का सार्वजनीन प्रकाश है। ___मेरा विश्वास है कि इस सूत्र पर विश्लेषणपूर्वक प्रवचनों के श्रवण, मनन और चिन्तन से श्रोताओं के अन्तःकरण में आत्मानुभूति जगेगी; उनमें त्याग, वैराग्य और विवेक जागृत होगा; समता, एकरूपता और सरलता के संस्कार उद्बुद्ध होंगे। उनके आचरण में नैतिकता और धार्मिकता पनपेगी। उनके जीवन में क्षमा, दया, सत्यता, शील, कष्टसहिष्णुता, उदारता, समता आदि गुणों की अभिवृद्धि होगी। साधना के पथ पर बढ़ने वाले प्रत्येक साधक को इनसे प्रकाश मिलेगा। ये दीपक की भांति उसके पथ को आलोकमय बनायेंगे। 0
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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