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________________ अमर दीप प्रतिनिधि तत्त्वचिन्तकों और साधकों के नामों का उल्लेख है, वैसे ही वैदिक संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में देवनारद और आंगिरस ऋषि का, तथा पिंग और इसिगिरि जैसे माहण ( ब्राह्मण) परिव्राजकों का एवं बौद्ध संस्कृति के 'सालिपुत्त' जैसे बौद्ध श्रमणों का भी उल्लेख आया है । इस पर यह तथ्य दिन के उजाले की तरह स्पष्ट प्रतीत होता है कि ऋषिभाषितसूत्र के प्रवक्ता निष्पक्ष एवं सत्यग्राही थे, अत चाहे यह सूत्र तीर्थंकर भगवान् के द्वारा साक्षात् कथित न हों, परन्तु उनका अध्यात्म-ज्ञान इन प्रत्येकबुद्धों की वाणी में अवश्य ही अवतरित होकर आया । ये सभी निश्चयतः सम्यग्दृष्टि थे । इसलिए इनके द्वारा रचित शास्त्र सम्यक् श्रुत है, ऐसा मानने में कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए । ऋषिभाषितसूत्र की विशेषता ४ यह बात निश्चित है कि सत्य और अध्यात्मज्ञान किसी एक सम्प्र- विशेष की बपौती नहीं होते । ऋषिभाषित - सूत्र सत्य एवं आध्यात्मिक अनुभवों का खजाना है । यह निष्पक्षदृष्टि से शाश्वत सत्य का पिटारा है । अध्यात्म की गहन बातें बहुत ही सरल शब्दों में समझाई गई हैं । साधकजीवन की उलझी हुई गूढ़ ग्रन्थियों को सुलझाने का सरल सरस तरीका इसमें सुझाया गया है । ऋषिभाषितसूत्र में आप यह विशेषता पायेंगे कि इसका प्रवक्ता ऋषि अपने जीवन में अनुभूत एवं प्रयुक्त तथ्य-सत्य को अपने प्रवचन में प्रस्तुत करता है । वह रटी - रटाई या कहीं से उधार ली हुई बातें नहीं कहता, अपितु तीर्थंकरों के द्वारा प्ररूपित सिद्धान्तों का प्रतिबिम्ब उनके अनुभूत वचनों में स्पष्ट प्रतीत होता है । वस्तुतः ये सभी प्रत्येकबुद्ध साम्प्रदायिकता से उन्मुक्त सत्यान्वेषी साधक थे इसलिए उन्होंने अपने विचार खुले दिलोदिमाग से बिना किसी पूर्वाग्रह के प्रस्तुत किये हैं । जैसे मक्खन छाछ या मट्ठे में रहता है, किन्तु छाछ उसमें नहीं रहती, नोका पानी में रहती है, किन्तु पानी नौका में नहीं रह पाता, इसी प्रकार विशिष्ट अनाग्रही सन्त देह से अपनी मौलिक मर्यादा से सम्प्रदाय या समाज में रहता है, किन्तु उसकी आत्मा में साम्प्रदायिकता या सम्प्रदाय का जोशोखरोश नहीं रहता । उसका हृदय महासागर की भाँति गम्भीर, विशाल एवं गुणों का रत्नाकर होता है । आप ऋषिभाषितसूत्र में यह विशेषता भी पायेंगे कि इसमें समग्र भारतीय अध्यात्म का एवं भारतीय संस्कृति का बड़ा मधुर संगम है । हजारों हजार वर्षों से साथ-साथ बहने वाली जैन, बौद्ध और वैदिक संस्कृति की पावनधारा का त्रिवेणी संगम इस सूत्र में मिलेगा और इसकी शीतलता से आपको बड़ी तृप्ति मिलेगी ।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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