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२०६ अमरदीप
नन्द कहते हैं । परन्तु वह विनोदानन्द भी तब दुःखरूप हो जाता है, जब हँसी-मजाक लड़ाई और द्वेष का रूप धारण कर लेती है अथवा किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का वियोग हो जाता है, अथवा जुए आदि के खेल में अत्यधिक हार होकर धनहानि हो जाती है, अथका शिकार आदि करके अपने जरा से सुख के लिए या मनोरंजन के लिए अनेक निर्दोष प्राणियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है । ये और ऐसे सभी विनोदानन्द दुःख के बीज बोने वाले हैं ।
पाँचवाँ स्वतन्त्रतानन्द है । किसी बन्धन से, परतंत्रता से, अथवा किसी के नियंत्रण से छूटना स्वतन्त्रता है । इस प्रकार की स्वतन्त्रता से मनुष्य को जो सुख मिलता है, वह स्वतन्त्रतानन्द है । परन्तु कई बार मनुष्य स्वतंत्रता के -बदले स्वच्छन्दता को अपना कर अपना पतन कर लेता है, किसी के नैतिक नियंत्रण में रहना पसन्द नहीं करता, समाज के नियमों के विरुद्ध चलता है; शराब, मांसाहार, परस्त्रीगमन आदि व्यसनों का शिकार बन जाता है, तब उसका वह सुख परिवार, समाज, एवं राज्य के कठोर दण्ड से, बेइज्जती, बदनामी आदि के कारण दुःखरूप बन जाता है । समाज एवं परिवार के असहयोग का दुःख भी उठाना पड़ता है । स्वच्छन्दता के कारण चोरी, हत्या, 'डकैती. गुण्डागर्दी आदि के कारण समाज एवं राष्ट्र के लिए वह कांटा बन जाता है, उसे उखाड़ने का प्रयत्न होता है, तब उसकी तथाकथित स्वतंत्रता - अनेक दुःखों को न्यौता देने वाली बन जाती है ।
छठा है - विषयानन्द; यह भी इन्द्रियविषयों के अतिभोग के कारण इष्ट विषयों के वियोग और अनिष्ट विषयों के संयोग के कारण रोग, शोक, दैन्य आदि दुःखों को आमंत्रण देने वाला बन जाता है ।
सातवाँ महत्वानन्द है, मनुष्य के मन में उठने वाले सम्मान, प्रतिष्ठा, `पद, अधिकार, यशकीर्ति आदि की भूख शान्त होने पर जो सुखानुभव होता है, उसे महत्त्वानन्द कहते हैं । परन्तु यह महत्त्वानन्द पद-प्रतिष्ठा आदि के छिन जाने, अपमान, अपयश आदि होने पर दुःखरूप बन जाता है ।
आठवाँ रौद्रानन्द है; हत्या, हिंसा, बलि, आगजनी, लूटपाट, डकैती चोरी आदि क्रूर एवं रौद्र ( भयंकर) कुकृत्य करने में जो सुख मिलता है, उसे रौद्रानन्द कहते हैं । रौद्रानन्द को दूसरे शब्दों में क्रूरानन्द या पापानन्द कह सकते हैं । निरपराध व्यक्तियों को, निरीह मानवों, पशु-पक्षियों पर बरसाई जाने वाली क्रूरता या निर्दयतापूर्वक मारे-पीटे जाने को देखकर मन में जो - आनन्दानुभव होता है, वह रौद्रानन्द है । जानवरों को लड़ाना, उनकी बलि