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दुःखदायी सुखों से सावधान २०५. अत्यन्त दुःखी थे । यही कारण है कि सुख की समस्त सामग्री होते हुए भी वे अन्तर् से दुःखी थे। उनके सुख ही दुःखों को साथ में चिपकाए हुए थे।
आठ प्रकार के सुख इससे पूर्व हम उन सुखों का ही विश्लेषण कर ले तो ठीक रहेगा, जो पदार्थ -जनित हैं या कामनाजनित हैं, अथवा विषय जनित हैं। ऐसे सुख आठ प्रकार के होते हैं।
(१) ज्ञानानन्द, (२) प्रेमानन्द, (३) जीवनानन्द, (४) विनोदानन्द, (५) स्वतंत्रतानन्द, (६) विषयानन्द, (७) महत्त्वानन्द और (८) रौद्रानन्द ।
ज्ञानानन्द- वैसे तो सम्यक दृष्टि के लिए ज्ञान जीवन का प्रमुख आनन्द है । परन्तु मिथ्यादृष्टि या अज्ञानो वैसा ज्ञान प्राप्त करने में आनन्द मानता है, जिसे पाकर दूसरों को ठग सके, दूसरों पर जबरन शासन करके उन्हें डरा-सता सके, दूसरों पर कहर बरसा सके अथवा मंत्र-तंत्र, जादू-टोना आदि का ज्ञान करके दूसरों को प्रभावित करके उनसे धन खींच सके। ऐसा.ज्ञानानन्द सुख रूप होते हुए भी दुःख के बीज बोने वाला है।
दूसरा प्रेमानन्द है । मनुष्य को जब माता-पिता या गुरुजनों आदि का प्रेम मिलता है, तो मन में सुख की अनुभूति होती है, किन्तु यही सुखानुभूति तब दुःख रूप हो जाती है, जब प्रेम संकुचित स्वार्थ, धोखादेही, वंचना या कलह का रूप ले लेता है, या वह प्रेमपात्र से मिलना बन्द हो जाता है । अथवा वह प्रेम विकृत रूप लेकर किसो पतिव्रता, परस्त्री या युवती को अपने मोह जाल में फंसाने का कारण बनता है, तब दुःखरूप हो जाता है। कभी-कभी इस प्रकार के कामुक प्रेम में पागल व्यक्तियों को भारी संकट उठाना पड़ता है; प्राणों से भी हाथ धोना पड़ता है । ऐसा प्रेम कल्पित सुखरूप होते हुए भी अनेक दुःखों को लेकर आता है ।
तीसरा जीवनानन्द है, जो जीवन के लिए उपभोग्य वस्तुओं के मिलने से प्राप्त होता है। परन्तु यह सुख भी तब दुःखरूप हो जाता है, जब इसमें अन्य सम्बन्धित लोगों के प्रति अनुदारता, संकीर्ण स्वार्थवृत्ति, ईर्ष्या, छलकपट, अन्तरायवृत्ति आ जाती है । तब परस्पर संघर्ष, तूतू-मैंमैं और कलह होता है । कई बार वर्षों तक वैर-विरोध चलता है। ऐसी स्थिति में वह जीवनानन्द भी दुःखरूप बन जाता है ।
___ चौथा विनोदानाद मनोरंजन, प्रसन्नता, खेलकूद, विनोद, हास-प्रहास, नाटक, सिनेमा आदि का प्रेक्षण वगैरह से जो आनन्द होता है, उसे विनोदा