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________________ शुद्ध-अशुद्ध क्रिया का मापदण्ड १६७ सौराष्ट्र के एक कस्बे में देवचन्द भाई नाम का एक व्यापारी रहता था। वह उस कस्बे का महाजन (सेठ) कहलाता था। उस कस्बे के सभी लोगों का वह माननीय और आदरणीय व्यक्ति था। आधी रात को भी किसी पर कोई संकट आता या पैसे की या किसी आवश्यक वस्तु की जरूरत होती तो देवचन्दभाई उसे मदद करता था। देवचन्दभाई महाजन पद की बहुत बड़ी जिम्मेवारी समझता था। ___एक बार उस गाँव के बाहर एक कुए से पानी भरने के लिए एक हरिजन महिला गई। पानी भरते समय अकस्मात् उसका पैर फिसल गया और वह कुए में गिर गई । कुए पर कुछ युवक खड़े थे, वे तैराक भी थे। कुछ लोगों ने उनसे कहा भी कि 'यह बाई कुए में गिर पड़ी है, तुम तैर सकते हो, तो इसमें कूद पर इसे बाहर निकाल दो न ।' परन्तु वहाँ खड़े हुए सभी युवकों ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा – 'हे हैं ! हम कैसे निकालें इस महिला को ? यह अछूत है, इसे छूने से हमारा धर्म भ्रष्ट हो जायेगा। हम इस कार्य को नहीं कर सकते।' इतने में किसी ने उस हरिजन महिला के पति को खबर दी कि तुम्हारी पत्नी कुए में गिर गई है। वह बेचारा दौड़ादौड़ा आया । उसे तैरना नहीं आता था। इसलिए उसने कुए पर खड़े उन युवकों से कहा तो उन्होंने इन्कार के रूप में वही उत्तर दिया । तब उस हरिजन महिला का पति घबराया हुआ-सा भागा-भागा देवचन्दभाई महाजन के पास गया और गिड़गिड़ा कर कहने लगा-'देवाभा ! मेरी पत्नी कुए में गिर गई है। किसी तरह आप उसे निकाल दें, बड़ी कृपा होगी।' देवचन्दभाई के सामने अपने महाजन-पद की जिम्मेवारी का तथा मानवता का प्रश्न था। इसलिए उन्होंने इन्कार न करके तुरन्त आश्वासन देते हुए हरिजन से कहा-“घबरा मत। मैं तुरन्त आता हूँ।" सेठ जिन कपड़ों में था, उन्हीं साधारण कपड़ों में कूए पर आया। साथ में एक बड़ा मजबूत रस्सा ले आया । पहले तो सेठ ने अपनी कमर के चारों ओर रस्सा बाँधा और फिर उसका सिरा मजबूती से थामने को अपने कुछ लोगों से कहा । सेठ जब कुए में उतरने को तैयार हुआ तो वहाँ जो युवक पहले उपेक्षा करके खड़े थे, उनके हृदय में राम जागा। उन्होंने महाजन को कुए में उतरने से इन्कार करते हुए कहा-'सेठजी, रहने दीजिए। हम तुरन्त उस बाई को बाहर निकाल कर ले आते हैं।' एक साथ तीन-चार युवक कुए में कूदे और बहुत फूर्ती से उस बाई को कुए से बाहर निकाल लाये। वह काफी पानी पी गई थी, इसलिए उसके शरीर से पानी निकाल कर
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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