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________________ लोकैषणा और वित्तषणा के कुचक्र धर्मप्रेमी श्रोताजनो! साधक के जीवन में असन्तोष सबसे बड़ा अभिशाप माना जाता है। असन्तोष वह आग है, जो एक बार लगने के बाद कभी बुझती नहीं । अपने पास सब कुछ होते हुए भी असन्तोषी व्यक्ति के मन में और हो जाए, इतना हो जाए' इसकी रट लगी रहती है। असन्तोषी व्यक्ति के मन में लोभ के कारण सदैव बेचैनी रहती है । वह शान्तिपूर्वक अपना आत्म-चिन्तन, आत्मशुद्धि, आत्मालोचन या आत्मजागरण कर नहीं सकता। लोभ के कारण उसकी शारीरिक हानि तो होती ही है, मानसिक और बौद्धिक हानि उससे भी अधिक होती है। असन्तोषी व्यक्ति नैतिकता-अनैतिकता के सारे विचार भूल जाता है और येन-केन-प्रकारेण अधिक से अधिक संग्रह, अधिक से अधिक पाने की तृष्णा और लालसा करता रहता है। चारित्र का नाश होने से उसके जीवन से सुख और शान्ति विदा हो जाते हैं। उसकी प्रतिष्ठा भी गिर जाती है। लोभ चाहे धन-सम्पत्ति का हो, चाहे जमीन-जायदाद का, चाहे वस्त्र, मकान, मान-प्रतिष्ठा, भोजन आदि किसी अन्य प्रकार का हो, वह मनुष्य को ऐसा फंसाता है कि मनुष्य उसके जाल से फिर निकल नहीं सकता । असन्तोष के कारण व्यक्ति प्रेम, भाईचारा और सहिष्णुता के तमाम गुणों को तिलांजलि दे देता है। समाज में परस्पर संघर्ष, अशान्ति, युद्ध, मारकाट और हिंसा का मूल कारण असन्तोष ही है। वित्तषणा और लोकैषणा का स्वरूप मानव-मन में दो प्रकार की वृत्तियाँ हैं, जो आत्मा को चंचल बनाती हैं। उनमें एक शुभवृत्ति है, दूसरी अशुभ । वृत्ति से ही व्यक्ति का जीवन का निर्माण होता है। मानव-मन को अशुभ की ओर प्रेरित करने वाली दो
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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