________________
१६४ अमर दीप लेता है, बशर्ते कि वह मार्गदर्शक गुरु के सान्निध्य में रहकर ग्रहण और आसेवन दोनों प्रकार की शिक्षाओं का प्रशिक्षण (यानी थ्योरिटिकल और प्रेक्टिकल दोनों प्रकार की ट्रेनिंग प्राप्त करके आध्यात्मिक विज्ञान का पूर्ण विज्ञाता और आत्मबलपूर्वक उसका प्रयोक्ता हो जाए।
इस प्रकार का साधक दीर्घकालीन निरन्तर सत्कारपूर्वक अध्यात्ममार्ग (मोक्षमार्ग) का सेवन करने से एक ओर से राग-द्वष के कारण आते हुए नये कर्मों को रोक लेता है, दूसरी ओर से परीषह, कष्ट, वेदना आदि को सहन करते समय समभाव रखकर पुराने कर्मों की निर्जरा कर लेता है। इस प्रकार कर्मों को (अथवा कर्मों के बीज-रागद्वष को समूल नष्ट करके वह सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो जाता है।
___ मोक्ष के स्वरूपज्ञान का अर्थ है-कर्मों से छुटकारा पाने का ज्ञान । दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि ऐसे अध्यात्म विज्ञान-वेत्ता को स्पष्टरूप से प्रतीत होने लगता है कि कौन-सा कर्म किस-किस प्रकार से किन-किन कारणों से बँधता है ? उससे सर्वथा मुक्त होने का, नये कर्मों को प्रविष्ट होने से रोकने (संवर) का कौन-कौन-सा उपाय है ? इस प्रकार का विज्ञाता ही कर्मों को काट सकता है ।
बन्धुओ!
यह है-आध्यात्मिक विकास का यथार्थ राजमार्ग ! केवल आत्मद्रव्य का रटन करने से तथा शास्त्रीय गाथाओं को बिना समझे-बूझे घोंट लेने से अथवा उन पर लम्बा:चौड़ा भाषण कर देने मात्र से किसी का आध्यात्मिक विकास हो गया है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। आध्यात्मिक ज्ञान की परिपक्वता के अभाव में बहुत-से मोक्ष के दीवानों ने अपने प्राणों को होम दिया, अपार कष्ट सहन कर लिये, किन्तु अध्यात्मदृष्टि के अभाव में उनके रागद्वेष की आग नहीं बुझी, अहंकार और कामना-नामना की भूख नहीं मिटी, इसलिए वे मोक्ष की मन्जिल नहीं पा सके। केवल देहदण्ड या अध्यात्मज्ञान का प्रदर्शन ही. उनके पल्ले पड़ा। इसीलिए अर्हतर्षि मंखलीपुत्र को आध्यात्मिक विकास का वास्तविक राजमार्ग बताना पड़ा।