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________________ आध्यात्मिक विकास का राजमार्ग १६३ मार्गदर्शक यदि अध्यात्म का सिद्धहस्त और अनुभवी चिकित्सक हो तो साधक उसके सान्निध्य में रहकर आत्मा की स्वभावदशा प्राप्त करने में आने वाले विकाररूपी रोगों को अनायास ही दूर कर सकता है । कुशल अध्यात्म चिकित्सक किस प्रकार से साधक की आध्यात्मिक चिकित्सा करता है और उसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त करा देता है ? इस सम्बन्ध में अगली गाथाओं में कहा है संजोए जो विहाणं तु दव्वाणं सो उ संजोग - णिप्फण्णं सव्वं विज्जोपयार- विष्णाता, जो धीमं सो विज्जं साहइत्ताणं, कज्जं कुणइ वित्त मोक्खमग्गस्स, सम्मं जो तु विजाणति । राग-दोसे गिरा किच्चा सो उसिद्धिं गमिस्सति ॥ ५ ॥ सत्तसंजुत्तो । तक्खणं ॥४॥ गुणलाघवे । कुणइ कारियं ॥३॥ ' ( वह सिद्धहस्त मार्गदर्शक पहले साधक को ) द्रव्यों के गुण और लाघव के विधान की (कुशलतापूर्वक) संयोजना कराता है । वही संयोजनानिष्पन्नता (आध्यात्मिक विकास के) सभी कार्यों को पूर्ण करती है ।' 'इसके पश्चात् प्रज्ञाशील साधक स्वयं उस आध्यात्मिक विद्या (ज्ञान) और उसके उपचार (प्रयोग) का विज्ञाता एवं सत्त्वसंयुक्त (आत्मबल एवं साहस से युक्त होकर उक्त अध्यात्मविद्या की साधना (पंचाचार रूप में) करके अविलम्ब अभीष्ट कार्य सिद्ध कर लेता है ।' 'इस प्रकार कुशल गुरु के निर्देशन में जो साधक मोक्षमार्ग की निष्पत्ति (स्वरूप रचना) सम्यक् प्रकार से जानता है, वह राग-द्व ेष को समूल नष्ट करके सिद्धि (आत्मविमुक्ति) प्राप्त कर लेता है ।' अभिप्राय यह है कि अनुभवी चिकित्सक की तरह कुशल मार्गदर्शक, साधक को आत्म-द्रश्य के साथ-साथ संयोग-सम्बन्ध से जुड़े हुए शरीर, मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ, विविध अंगोपांग आदि सहायक द्रव्यों तथा पात्र, वस्त्र, रजोहरण, ग्रन्थ, शास्त्र, आहार- पानी मकान आदि धर्मपालन में सहायक अजीव द्रव्यों तथा साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका, संघ आदि सजीव द्रव्यों के गुण और उनको कर्मबन्धन न हो, इस प्रकार का लाघव (प्रयोग - कौशल) बताता है, फिर नियम एवं विधान के अनुसार साधुता के अनुरूप तादात्म्य और ताटस्थ्य के ज्ञान का संयोजन भी कर देता है । इस प्रकार की संयोजनानिष्पन्नता साधक में आ जाने पर वह फुर्ती से आध्यात्मिक विकास कर
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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