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________________ जन्म-कर्म-परम्परा की समाप्ति के उपाय १३३ -यदि व्याधिग्रस्त मानव दोषों (त्रिदोषों) के आगमन को रोककर वैद्यकशास्त्रानुसार प्रवृत्ति करता है और पूर्वदोषों का परिमार्जन करता है तो व्याधि से मुक्त हो जाता है। (इसी प्रकार भवभ्रमण की व्याधि या कर्मव्याधि से ग्रस्त मानव नये दोषों (आस्रवों) की परम्परा को रोककर सम्यक् शास्त्रानुकूल प्रवृत्ति करता है, पुराने पूर्वोपार्जित) कर्मदोषों का क्षय करता है तो वह कर्मव्याधि से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त कर लेता है ।) -आत्मा के दोष हैं-मद्य, विष, अग्नि, ग्रहावेश, ऋण और शत्रु, (ये आयूष्य को शीघ्र समाप्त करने में निमित्त) हैं, जबकि धर्म (रत्नत्रयरूप) को जीवों का ही ध्र व धन जानना चाहिए। यहाँ दैहिक और आत्मिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाने वाले दोष बताए गए हैं। आत्मा का आत्मस्वभावरूप धर्म ही ध्र व धन है। जो सम्प्रदायों और पंथों से ऊपर है। -कर्मग्रहण को रोककर सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्ष मार्ग का अनुसरण करने वाला पूर्वाजित कर्मों की निर्जरा करके समस्त दुःखों का क्षय कर देता है। यही आत्मा की मुक्ति है, सिद्धि है, सर्वदुःखों का अन्त है, भवपरम्परा का अन्त है, सर्वकर्म क्षय है। वस्तुतः मुक्त आत्मा ही सिद्ध, बुद्ध, सर्वकर्म मुक्त, भवभ्रमण से रहित तथा समस्त दुःखों का अन्त करता है। आत्मा की शुद्धि के उपाय बन्धुओ! यह तो पहले कहा जा चुका है कि आत्मा कर्मों से लिपटा हुआ है। कर्मबन्ध के पाँच कारणों में सबसे अग्रणी है-मिथ्यात्व । इसका सहभावी है-अनन्तानुबन्धी-कषाय-चतुष्क । यह आत्मा का कट्टर शत्रु है। आत्मा के सम्यग्दर्शन-गुण का यह घात करता है। यह कषाय समग्र जीवनपर्यन्त आत्मा को जलाता रहता है उस आग की लपटों में दूसरों को झुलसाता है । जो कषाय जीते जी अन्तर् को आग में जलाता है और मरने के बाद भी नरक की आग में पटकता है, वह अनन्तानुबन्धी कषाय है। ___ शत्रु पर विजय पाने के लिए दो साधन अपेक्षित हैं-शक्ति और सुरक्षा के साधन । आत्मा सम्यग्दर्शन की शक्ति पाए और दूसरी ओर से आत्मा की सुरक्षा के लिए अहिंसा आदि धर्माचरण और सम्यक्तपश्चरण हो तो आत्मा अनन्तानुबन्धी-कषाय को समाप्त कर देता है। उससे आत्मा बहुत अंशों में शुद्ध और सशक्त बनता है। अर्हतर्षि महाकाश्यप इसी तथ्य की ओर इशारा करते हैं
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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