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________________ जन्म-कर्म-परम्परा की समाप्ति के उपाय ११ 1 मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ । ये ५ भेद हैं- ( १ ) सम्यक्त्व संवर ( २ ) विरति संवर (३) अप्रमाद संवर ( ४ ) अकषाय संवर और (५) अयोग संवर । (१) सम्यक्त्व संवर -- सम्यक्त्व संवर का अभिप्राय मिथ्यात्व की प्रवृत्ति को रोकना है । आत्मा अनादिकाल से मिथ्यादर्शन से युक्त होकर संसार में परिभ्रमण कर रहा है । मिथ्यात्व ही अनंत संसार का कारण है । इसके निरोध से अनंत संसार परीत हो जाता है । सम्यक्त्व के प्रभाव से आत्मा में संसार के प्रति विरक्ति होती है । उसकी रुचि मोक्ष की ओर हो जाती है । संसार के प्रति विरक्ति ही सम्यक्त्व संवर है । मुमुक्षु साधक इस संवर को करता है । (२) विरति संवर - सम्यक्त्व - प्राप्ति से प्रति विरक्ति होती है, वह धीरे-धीरे बढ़ती है । पापों से विरक्त होता जाता है । आत्मा में जो संसार के साधक इन्द्रियभोगों और अपनी शक्ति और योग्यता के अनुसार वह देशसंयम ( श्रावक के व्रत) तथा सर्वसंयम ( मुनि के व्रत) ग्रहण करता है, देशसंयम अथवा सर्वसंयम का पालन करके विरति संवर करता है । (३) अप्रमादसंवर - जब साधक अपने स्वीकृत व्रतों में अत्यधिक सावधान रहता है, बिल्कुल भी प्रमाद, असावधानी अथवा आलस्य नहीं करता तब उसके अप्रमाद संवर होता है । (४) अकषायसंवर - क्रोध, मान, माया, लोभ इन कषायों और नोकषायों के आस्रव को रोकना अकषाय संवर कहलाता है । यह स्थिति उच्च गुणस्थानों की भूमिका में आती है, विशेष रूप से ग्यारहवें, बारहवें तथा आगे के गुणस्थानों में, जहाँ कषायों का आस्रव एवं बंध पूर्ण रूप से रुक जाता है । (५) अयोगसंवर – यह स्थिति १३ - १४वें गुणस्थान में आती है, जब केवली भगवान योगों का निरोध करके शैलेशी अवस्था प्राप्त करते हैं और पाँच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण मात्र समय में देह त्यागकर मुक्त हो जाते हैं । यही अयोग संवर है । देश और सर्व संवर का स्पष्टीकरण बंधुओ ! मैंने आपको संवर के भेदों का विभिन्न अपेक्षाओं से परिचय दिया | अब एक बात स्पष्ट करने को रह जाती है । वह है-संवर के देशसंवर और सर्वसंवर विकल्प । अतर्षि महाकाश्यप ने गाथा में कहा है-कमसो संवरो नेओ, देससव्व - विकपिओ । अर्थात् साधक क्रमशः संवर को प्राप्त होता है, वह संवर देश और सर्व दो प्रकार का है । 1
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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