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११८ अमर दीप
उनके प्रतिपक्षी उतने ही कारण संवर के हैं और ये संवर के भेद कहे जाते हैं । अपेक्षाभेद से इनकी संख्या में भी भेद पड़ गया है। कहीं संवर के २० भेद बताये हैं तो कहीं ५७ और ५ भेद ही किये हैं ।
यद्यपि अपेक्षाभेद से संवर के कितने ही प्रकार गिना दिये जायँ किन्तु प्रमुख रूप से संवर के भेद ५ ही हैं । इन ५ भेदों का थोड़ा-सा संक्षिप्त वर्णन
१. संवर के बीस भेव - ( १ ) सम्यक्त्वसंवर ( २ ) विरति संवर, (३) अप्रमाद संवर, (४) अकषाय संवर (५) अयोग संवर (६) अहिंसा संवर - जीवों पर दया के भाव रखना ( ७ ) सत्य संवर ( ८ ) अदत्तादान संवर ( 8 ) ब्रह्मचर्य संवर (१०) ममत्वत्याग संवर - परिग्रह के प्रति ममत्व एवं मूर्च्छा न रखना ( ११ – १५) पाँचों इन्द्रियों का संवर- इन्द्रियों के विषयों की ओर मन को न जाने देना । ( १६ - १८) मन-वचनकाय - तीनों योगों को वश में रखना, इनका संवर करना (१६) भाण्डोपकरणों को यतना से सावधानीपूर्वक उठाना और रखना तथा ( २० ) सूई, तृण आदि तुच्छ arga के प्रति भी सभी प्रकार की सावधानी रखना ।
संवर के ५७ भेद -संवर के ५७ भेद दो अपेक्षाओं से बताये गये हैं । प्रथम अपेक्षा से - (१-५) पाँच समिति, (६–८) तीन गुप्ति, (६ - १८) दश प्रकार का श्रमण धर्म (१६ -४०) बाईस परीषहों पर विजय, (४१ - ५२ ) अनित्यादि बारह अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन, ( ५३ - ५७ ) सामायिक आदि पांच प्रकार के चारित्र का पालन करना । जैसा कि कहा है
(क) आस्रव-निरोधः संवरः । चारित्रः ।
स गुप्ति समिति-धर्मानुप्रेक्षा- परीषहजय- तत्त्वार्थ सूत्र ९ / १-२
(ख) समिई - गुत्ति - परीसह - जईधम्मो भावणा चरिताणि । पण ति दुबीस-दस-बारस - पंचभेएहि सगवन्ना ।"
-नवतत्वप्रकरण, गाथा २५
दूसरी अपेक्षा से ५७ भेद इस प्रकार भी हैं - (१ - ५) पाँच प्रकार के मिथ्यात्व का त्याग, (६ - १७) बारह प्रकार की विरति (१८ - ४२ ) पच्चीस प्रकार की कषाय - अनंता बंत्री आदि की अपेक्षा से क्रोध, मान, माया, लोभ - ये १६ प्रकार की काय और हास्य यादि ६ प्रकार की नोकषाय- इन सबका त्याग, ( ४३ - ५७ ) पन्द्रह प्रकार के योग ।
सम्मत्त देसवयं महन्वयं तह जओ कसायाणं । एदे संवर णामा जोगाभावो तहा चेव ॥
- कत्तिगेयाणुप्पेक्खा, संवराणुप्पेक्खा, गाथा ६५