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________________ जन्म-कर्म - परम्परा की समाप्ति के उपाय ११५ भरा है । उसे जल से खाली करना है, किन्तु जब तक जल के आने के दरवाजे (मोरियां) खुले हैं, तब तक सरोवर ( जीव रूपी तालाब) कर्मरूपी जल से खाली होकर सूखेगा नहीं । उत्तराध्ययन सूत्र में सरोवर को सुखाने का उत्तम उपाय बताया गया है-. जहा महातलायस्स सन्निरुद्धे जलागमे । उस्सिंचणा तवेण य कम्मेण सोसणा भवे ॥ - ३२ / ५ जैसे विशाल तालाब में पानी आने का मार्ग (मोरी) रोक दिया जाए और बाद में उसका पानी उलीचा जाए तथा ताप की व्यवस्था की जाए तो वह महा तालाब (विशाल सरोवर) क्रमशः सूख जाता है, उसी प्रकार आत्मा रूपी तालाब में पुण्य-पापरूपी आस्रव (कर्मों के आगमन) का द्वार रोक दिया ( संवर किया जाए और फिर बारह प्रकार के तप से, परीसह सहन से उसे ताप दिया जाए और उलीचा जाए ( निर्जरा की जाए) तो कर्मरूपी सूख सकता है । संवर और निर्जरा के कार्य अब अर्हतर्षि महाकाश्यप संवर और निर्जरा का स्वरूप और उसकी गतिविधि के विषय में कहते हैं एस एव विवण्णासो संवुडो संवुडो पुणो । कमसो संवरो नेओ, देस-सव्व-विकप्पिओ ॥ ८ ॥ सोपायाणा निरादाणा विपाकेयर संजुया । उवक्कमेण तवसा निज्जरा जायए सया ॥६॥ संततं बंधए कम्मं, निज्जरेइ य संततं । संसारगोयरो जीवो विसेसो उ तवोमओ ॥१०॥ अर्थात् – यही (जन्म-कर्म - परम्परा) आत्मा की विपन्न अथवा विभाव दशा है । इस विपन्न दशा को समाप्त करने के लिए साधक पुनः पुनः संवर करके अपनी आत्मा को आंशिक अथवा पूर्णरूप से संवृत करता है । दूसरे शब्दों में साधक अपनी आत्मा को - आत्मिक प्रवृत्तियों को संवरयुक्त बनाकर कर्मों के आस्रव का निरोध करता है । -- ( तत्पश्चात् अर्थात् संवर के उपरान्त साधक निर्जरा में प्रवृत्त होता है ।) वह निर्जरा आदान सहित ( सोपादाना) अथवा आदान रहित ( निरादाना) भी होती है। साथ ही विपाक सहित (सविपाक) और विपाकेतर ( अविपाक - विपाकेतर ) भी होती है । इसके अतिरिक्त सोपक्रम ( उव
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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